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________________ [ 164 ] तथा ज्ञातासूत्र में ही श्री मल्लिनाथ स्वामी के दीक्षा विषयक वर्णन को जमालि के अधिकार में से जान लेना ऐसा सूत्रकार महर्षि श्री देवद्धिगणि महाराज ने कहा है। यथा 888 एवं विणिग्गमो जहा जमालीस्स / 288 ठीक उसी प्रकार राजकुमारी द्रौपदी ने विस्तार से जिन पूजा की थी, इस विषय में शास्त्रकार महर्षि "रायपसेणी" नामक उपांगसूत्र का निर्देश करके कहते हैं कि- "द्रौपदी ने विस्तार से जिन पूजा की थी वह "रायपसेणी सूत्र" में से देख लेना।" श्री ज्ञाताधर्म कथा नामक छट्ठा अंगसूत्र के कर्ता 1 पूर्वधर महर्षि पूज्य देवद्धिगणि क्षमाश्रमण भी द्रौपदी विषयक जिनपूजा के अधिकार को सूर्याभदेवका अधिकार जिस “रायप्रश्नीय" नामक उपांग सूत्र में है, उसमें से देखलेने का निर्देश [ सूचन ] करते हैं. यह इसबात का सूचक है कि 1 पूर्वधर महर्षि श्री देवद्धिगणि क्षमाश्रमण महाराज भी अंगसूत्र के समान ही उपांग सूत्र का भी महिमा-महत्व करते हैं / यानी उपांगसूत्र भी अंगसूत्र जितना ही महत्वपूर्ण और प्रामाणिक है / ] द्वितीय प्रमाण श्री रायपसेणीय नामक उपांग सूत्र में सूर्याभदेव ने जिनमूर्तिपूजा की थी, इस विषयक पाठ xxx तएणं से सूरियाभे देवे चहिं सामाणिय सहस्सीहिं जाव अन्नेहि य बहुहिं य सूरियाभ जाव देवेहि य देवीहिं सद्धि संपरिवुडे सव्वढ्ढिए जाव णा (व) निय-रवेणं जेणेव सिद्धायतणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सिद्धायतणं पुरथिमिल्लेणं वारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेरणेव देवच्छंदए,
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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