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________________ [ 140 ] कपदियक्ष, चक्रेश्वरी देवी तथा गोमुख यक्ष आपकी सेवा में उपस्थित रहते थे। 888 मीमांसा-मापने दिल में रहा हुआ पाप प्राचार्य ने "श्रद्धालुओं द्वारा परम्परा से यह मान्यता अभिव्यक्त की जा रही है"इन शब्दों में प्रकाशित किया है, क्योंकि यहां श्रद्धालु और परम्परा जैसे घटिया शब्दों की आवश्यकता ही क्या थी ? प्राचार्य ने यहां श्रद्धालुओं' शब्द का तात्पर्यार्थ नहीं लिखा है किन्तु प्राचार्य का तात्पर्य ऐसे लोगों से हो सकता है जो कि किंवदन्ती या अंधश्रद्धा में विश्वास रखते हों, परन्तु "श्रद्धालुओं" ऐसा शब्द लिखना अनुचित इसलिये है कि तो क्या प्राचार्य स्वयं 'प्रश्रद्धालु' हैं ? तथा 'परम्परा से' ऐसा लिखने के पीछे प्राचार्य की जघन्य भावना यह रही होगी कि परम्परा से यानी रूढ़ि से यानी गतानुगतिकता से श्रद्धालुभक्त ऐसी भावना व्यक्त करते हैं यानी स्वयं प्राचार्य का इसमें अविश्वास है। प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य में कहा है साथ साथ प्राचार्य ने खंड 2, पृ० 676 पर लिखा है, किन्तु यहां परम्परा से' एवं 'श्रद्धालभक्त' ये दो शब्द लिखना उनका अनुचित ही है। पूज्य देवद्धि गणि की सेवा में कपर्दियक्ष, चक्रेश्वरी देवी तथा गौमुखयक्ष रहते थे, तो इस बात में प्राचार्य को क्या नाराजी है ? "देवा वि तं नमसंति" इस प्रागम वचनानुसार संयमी पुरुषों को देव नमस्कार करते हैं यह सत्य तथ्य होते हुए भी 'परम्परा से" "श्रद्धालु" आदि शब्दों के लिखने की आवश्यकता ही क्या है ? प्रागमिक तथ्य होते हुए भी देव-देवियों के तथ्य का प्राचार्य अपलाप क्यों करते हैं ?
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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