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________________ [ 136 ] वल्लभीपुर में श्रमण संघ को इकट्ठा करवाकर प्रागमिक वाचना करवायी थी और जैनागमों एवं प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य को चिर स्थायी बनाकर अपार उपकार किया था। खंड 2, पृ० 676 पर आचार्य हस्तीमलजी लिखते हैं कि XXXआप पूर्व जन्म में हरिणगमेषी देव थे। नवोत्पन्न हरिणेगमेषी देव देवद्धि को सन्मार्ग पर लाने हेतु विभिन्न उपायों से समझाने का प्रयास करने लगा।xxx xxx उस समय सहसा देवद्धि के कानों में ये शब्द पड़े"अब भी समझ जाओ, अन्यथा तेरी मृत्यु तेरे सन्मुख खड़ी है।" भय विह्वल देवद्धि ने गिड़गिड़ाकर कहा-"जैसे भी हो सके मुझे बचाओ, तुम जैसा कहोगे वही मैं करने के लिये तैयार हूँ।xxx 888 देव ने तत्काल उसे उठाकर आचार्य लोहित्य सूरि के पास पहुँचा दिया और देवद्धि भी आचार्य लोहित्य का उपदेश सुनकर उनके पास श्रमण धर्म में दीक्षित हो गये।xxx ४४४बाद में वीर निर्वाण पश्चात् 980 साल बाद आपने बल्लभीपुर में आगम वाचना करके शास्त्र पुस्तकारूढ करवाके वर्णनातीत उपकार किया। 8xx मीमांसा-यहां तक पूज्य देवद्धि गरिण के विषय में सही सही लिखने वाले प्राचार्य ने जैसे ही शासन रक्षक देव-देवियाँ एवं यक्ष आदि की बात आयी कि वहां उन्होंने झूठ का सहारा ले लिया। खंड 2, 10 677 पर प्राचार्य लिखते हैं कि 888 श्रद्धालुओं द्वारा परम्परा से यह मान्यता अभिव्यक्त वडा Veer in की जा रही है कि आपके तप-संयम की विशिष्ट साधना एवं आराधना से
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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