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________________ 10 धातु की मूर्तियां बनने लगी। लोगों को आकर्षण बढ़ाने को प्रभावना, नाटक और स्वामी वात्सल्य आदि चालू किए / इस प्रकार सं० 882 में हिंसा धर्म प्रकट हुआ, उसका जोर बढ़ा।xxx xxx शिथिलाचारी साधुओं ने शास्त्रों को भंडारों में रखकर नयी रचना चालू की / वे काव्य, श्लोक, स्तुति और भाषा की रचना मनपसन्द संस्कृत व प्राकृत भाषा में करने लगे। चौपाई, कवित्त, दोहा, गाथा, छन्द, गीत आदि अनेक प्रकार की जोड़े कर लोगों को सुनाते, जिनेन्द्र देव की आज्ञा का लोप कर हिंसा धर्म की पुष्टि करते और रात में जागरण करवाते तथा पुस्तकों की पूजा करवाते, बाजा बजवाते, गीत गवाते और पूज्य कहाते हुए पांव मंडवाकर सरस माल खाते थे।xxx . 444 जिनेन्द्र पूजा के निमित्त नहाना, धोना और छले ( दुल्हे की तरह ) बने रहना तथा पूजा के लिये फल, फूल, वनस्पति आदि तोड़ने की व्यवस्था देकर हृदय के दया-भाव को घटा दिया।xxx xxx वीर सं० 882 में बारह वर्षीय दुकाल पड़ा। उस समय श्री पालिताचार्य शुद्ध संयमी हुए। आप दूर देशों में संयम गुण सहित विचरने लगे। पीछे से कई महापुरुषों ने संथारा कर लिया। कोई एक भवतारी हुए। जो कायर थे वे शिथिलाचारी हुए। भिखारियों से पृथ्वी भर गई। खाने को पूरा अन्न नहीं मिलता। तब श्रावक लोग किवाड़ जुड़े हुए रखते थे। तब श्रावकों और शिथिलाचारियों ने यह नियम बांधा कि द्वार पर आकर धर्मलाभ कहना / इस संकेत से किवाड़ खोलकर आहार वहरा देंगे / अस्तु / ऐसा ही होने लगा। भिखारी लोग इन साधुओं से रास्ते में आहार पानी छीन लेते थे। साधुओं ने सोचा मुहपत्ती अपनी पहचान है सो इसे उतारकर हाथ में ले लो। बोलते समय मुह को लगाकर बोलेंगे। इस रीति से उन्हें कुछ दिन आराम मिला। भिखारी इनकी चाल को समझकर फिर, आहार लूटने लगे। तब इन्होंने भी
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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