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________________ शास्त्र थे ? इत्यादि इत्यादि हम कुछ नहीं जानते हैं। . ऐतिहासिक नोंध पृ० 87] 888 स्थानक मत के प्राद्य प्रवर्तक लोकाशाह के विषय में इस प्रकार का अंधकार होते हुए भी यदि कोई व्यक्ति अपने मान्य पुरुष के प्रति प्रशंसाओं का पहाड़ खड़ा कर दे या उपमाओं का सागर सुखा दे तो हमें कुछ भी प्रापत्ति नहीं है, किन्तु जब वे हमारे प्राप्त, मान्य, महान उपकारी, महान ज्ञानी पूर्वाचार्यों को शिथिलाचारी कहें, पापधर्म के प्रवर्तक कहें तब ऐसे जघन्य कृत्य कारक के सामने शांत कैसे बैठा जा सकता है ? स्थानकवासी सम्प्रदाय के जाने माने प्राचार्य हस्तीमलजी ने 'पट्टावली प्रबन्ध संग्रह" में लिखा है कि xxx वीर निर्वाण (पश्चात् ) 628 में और विक्रम संवत् 412 के वैशाख शुक्ला 3 के दिन प्रतिमा की स्थापना हुई / 36 वर्ष तक अर्थात् 448 की साल तक कागज पर भगवान की तस्वीर बनाकर पूजन करते और उस पर केशर के छींटे डालते। इससे तस्वीर का आकार छिपने लगा। तब लिंगधारी रतन गुरु ने विचार कर काष्ट की प्रतिमा कराई। संवत् 448 के माघ शुक्ला 7 से काष्ठ को प्रतिमा पूजी जाने लगी। 49 वर्ष तक यह प्रथा चलती रही। फिर गुरुओं ने विचार किया कि काष्ठ की प्रतिमा नित्य पक्षाल करने से गीली रहती है, उसमें फूलन आ जाती है, इसलिए यह ठीक नहीं है।xxx [आचार्य हस्तीमलजी का झूठ देखो कि वे कागज पर भगवान की तस्वीर बनाकर पूजने की बात लिखते हैं जबकि भारतवर्ष में उस समय कागज का प्रचलन ही नहीं था। प्रागे वे कल्पित एवं हास्यास्पद बातें लिखते हैं कि-] xxx तब ( लिंगधारी गुरु ने) संवत 497 (चार सौ सतानवे ) की साल चैत्र शुक्ला 10 को मंदिर में पाषाण की प्रतिमा स्थापित की।
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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