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________________ [ 117 ] जन्म से स्थानकमार्गी पंडित सुखलालजी अपने पर्युषणा के व्याख्यान में लिखते हैं कि xxx हिन्दुस्तान में मूर्ति के विरोध की विचारणा मुहम्मद पैगम्बर के पीछे उनके अनुयायी अरबों और दूसरों द्वारा धीरे धीरे प्रविष्ट हुई। जैन परम्परा में मूर्ति विरोध को पूरी पांच शताब्दी भी नहीं बीती है [मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास में से] xxx मीमांसा-वास्तविकता तो यह है कि मूर्ति विरोध करने वालों के पास भी जैनधर्म की प्राचीनता सिद्ध करने के लिये मंदिर और मूर्ति को छोड़कर अन्य प्रमाण ही क्या है ? स्वयं प्राचार्य हस्तीमलजी ने ही नंदीसूत्र एवं कल्पसूत्र की पट्टावलियों को प्राचीन जिनप्रतिमा की चौकियों पर उट्ट कित लेख एवं प्राचीन शिलालेखों का सहारा लेकर ही प्राचीन एवं प्रामाणिक निर्णत किया है / विद्वान लेखक मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज अपनी "मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास" नामक किताब के पृ०७ पर लिखते हैं कि xxx स्थानकवासी मत प्रवर्तक लोकाशाह [ स्थानकपंथी परम्परा के आद्यप्रणेता एक वृद्ध जैन भाई] पर मुस्लिम संस्कृति का बुरा प्रभाव था और मूर्तिविरोधी उनकी मान्यता को मुसलमानों ने सहायता को थी।xxx मीमांसा-जैनधर्म में मंदिर और मूर्तिविरोधी मान्यता का प्राद्यप्रणेता लोकाशाह को माना जाता है, जो कि एकवृद्ध जैनभाई था और शास्त्रों को लिखकर अपनी प्राजीविका चलाने वाला लिखारी मात्र था / और उससे चले हुए लोंकागच्छीय प्राचार्यों ने ही मूर्तिपूजा
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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