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________________ [ 110 ] और लोगों पर उपसर्ग करने लगा। इससे बचने हेतु पूज्य भद्रबाहुस्वामी ने "उवसग्गहरं स्तोत्र" की रचना की, जिसके जाप-ध्यान से संघ उपद्रव रहित हुआ। प्राचार्य हस्तीमलजी खंड 2, पृ० 331 पर लिखते हैं कि 388 धात्री से बालक की मृत्यु का कारण पूछा गया तो उसने रोते हुए उस अर्गला को उठाकर महाराज के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया। अर्गला के मुख पर उत्कीर्ण की हुई बिडाल की आकृति को देखकर राजा ने आश्चर्याभिभूत होकर बारम्बार आचार्य भद्रबाहु की महिमा को 108 मीमांसा-यहाँ प्रश्न यह है कि बालक की मृत्यु बिडाल से हुई या लोहे की अर्गला से ? यद्यपि बालक की मृत्यु लोहे की अर्गला से हुई है, फिर भी अगाध ज्ञानी 14 पूर्वधर महर्षि श्री भद्रबाहुस्वामी ने बालक की मृत्यु का कारण बिडाल क्यों बताया ? इतने ज्ञानी को तो यह कहना चाहिए कि बालक की मृत्यु- "लोहे की नर्गला गिरने से होगी"। क्योंकि बिड़ाल की निर्जीव प्राकृति से किसी की मौत नहीं हो सकती / यहाँ 14 पूर्वधर को बिडाल की मूर्ति में भी मूर्तिमान अभिप्रेत है, किन्तु इसप्रकार की सूक्ष्म बात की समझ बिना गुरुगम के कारण स्थानकपंथी को कभी नहीं आयेगी, कि-"१४ पूर्वधर ने भी बालक की मौत का कारण बिडाल से कहा था, जोकि लोहे के कपाट पर उत्कीर्ण निर्जीव बिडाल की प्राकृति मात्र थी।" स्पष्ट तथ्य यह है कि केवलज्ञानी तुल्य देशना देने वाले चौदह पूर्वधर श्रीमद् भद्रबाहु स्वामी ने बिडाल की प्राकृति को भी बिडाल कहा है / इसी दृष्टांत से प्राचार्य को भी जानना चाहिए कि जिनेश्वर देव की प्रतिमा भी जिनेश्वर देव के समान कही जाती है /
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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