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________________ [ 103 ] प्राचार्य को अपनी करनी और कथनी जांचनी चाहिए और अगर उनकी उक्त करनी हिंसामूलक है तो उन्हें इनका त्याग करना चाहिए। हिंसा और अहिंसा के विषय में जैन सिद्धान्त स्याद्वाद के समुचित ज्ञान के अभाव के कारण ही प्राचार्य ने खंड 2, पृ० 156 पर लिखा है कि xxxजो लोग चैत्य, मंदिर, मठ और यज्ञ-यागादि धर्मकार्यों में होने वाली हिंसा को नहीं मानते उन्हें प्रश्न व्याकरण के इस अध्ययन को देखना चाहिए। इसमें अर्थ और काम निमित्त की जाने वाली हिंसा की तरह धर्महेतु की जाने वाली हिंसा को भी अधर्म बताया है। Xxx मीमांसा-'प्रश्न व्याकरण' पागम के नाम से मंदिर और मठ के साथ यज्ञ-यागादि की हिंसा को जोड़ना प्राचार्य का अप्रमाणिक कृत्य है। प्राचार्य ने अगर जैनागमों और प्रागमेतर जैन साहित्य वृत्ति, चूणि, भाष्य, टीकादि को अच्छी तरह देखा होता तो मंदिर के साथ यज्ञ-यागादि की हिंसा को जोड़ने का दुस्साहस नहीं करते। संपूर्ण जैन साहित्य में कहीं भी यज्ञ-यागादि क्रिया को सराहा नहीं है। इतना ही नहीं शास्त्रों में उनको सर्वथा अनुचित मानते हुए उनकी कड़ी आलोचना एवं भर्त्सना की गयी है। "चैत्य' शब्द के अर्थ को प्राचार्य हस्तीमलजी ने अस्पष्ट रखा है / यानी 'चैत्य' शब्द से उनका मतलब क्या साधु से, या ज्ञान से, या कामदेव की प्रतिमा से, या अन्य किसी अर्थ से है ? "मठ" शब्द से प्राचार्य का तात्पर्य अगर स्थानक या उपाश्रय से है, तब तो घटकुट्यां न्याय' चरितार्थ हो गया। वे स्वयं
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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