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________________ [प्रकरण-२४ ] स्याहाद सिद्धांत में हिंसा एवं अहिंसा __ वैसे देखा जाए तो सामायिक, प्रतिक्रमण, प्रवचन देना, गोचरी हेतु जाना आदि सभी शुभ धर्म क्रियाओं में स्थावरकाय की सूक्ष्म हिंसा होती ही नहीं है ऐसा दृढ़ता पूर्वक कहना मुश्किल है। श्रावक सम्मेलन करवाना, प्रदर्शन हेतु भक्तजनों को सैकड़ों मील की दूरी से वंदन के बहाने बुलाना, उनके भोजनादि की सुविधा के लिये अन्य भक्तों को प्रेरित करना, कबूतरों को चुग्गा डालने की प्रेरणा करना, स्थानक बनवाने की प्रेरणा देना, किताब छपवाना, गोठप्रीतिभोज करवाना, इतिहासादि मुद्रित करवाने हेतु वैतनिक पंडित को सावद्य प्रादेश पूर्वक इधर-उधर भेजना, निज की तस्वीर छपवाने-बँटवाने में भक्तगणों को मूक सम्मति देना, नारियल आदि की प्रभावना करवाना, दया पलवाने पर कच्चा पानी पीना-पिलाना, थोडीसी राख डलवा के पानी को अचित्त (! ) बनवाना आदि अनेक सावध यानी पापपूर्ण कार्यों को अहिंसा धर्म के प्रेमी माने जाने वाले और "प्रश्न व्याकरण" नामक पागम शास्त्र के नाम से दूसरों को अहिंसा विषयक कोरा उपदेश देने वाले प्राचार्य हस्तीमलजी उक्त सावध कार्य क्यों करते एवं करवाते हैं ? यह प्राश्चर्यपूर्ण है / "प्रारंभे नत्थि दया" अर्थात् "हिंसा रूप प्रारम्भ में दया नहीं है", ऐसा एकान्त से कहने वाले
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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