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________________ [ 76 ] मीमांसा-प्राचार्य का यह कैसा भद्दा तर्क है कि-"पूर्वाचार्यों ने बेईमानी करके "नमो बंभीए लिवीए" इस पाठ को श्री भगवती सूत्र में घुसा दिया होगा," किन्तु प्राचार्य का ऐसा लिखना अल्पज्ञता का ही सूचक है / पूर्वाचार्यों के कथन पर "सिद्धस्य गतिचिंतनीयाः" इस उक्ति को प्राचार्य हस्तीमलजी क्यों मान्य नहीं करते हैं ? श्री भगवती सूत्र कथित आदि एवं अन्तिम मंगल के विषय में प्राचार्य खंड 2, पृ० 170 पर इस प्रकार लिखते हैं कि 44 द्वादशांगी के पांचवें अंग "व्याख्या प्रज्ञप्ति ( अपरनाम श्रीमती भगवती सूत्र ) की आदि में "पंच परमेष्ठी नमस्कार मंत्र" ‘णमो बंभीए लिवीए' और "णमो सुयस्स" पद से मंगल किया है और अन्त में संघ स्तुति के पश्चात् गौतमादि गणधरों, भगवती व्याख्या प्रज्ञप्ति, द्वादशांगी रूप गणिपिटक, श्रुत देवता, प्रवचन देवी, कुम्भधर यक्ष, ब्रह्मशांति, वैराटया देवी, विद्यादेवी और अंतहुडी को नमस्कार किया गया है।xxx मीमांसा–परमपूज्य सूत्रकार महर्षि ने "नमो बंभीए लिवीए" ऐसा लिखकर द्रव्य-भाव मंगल-स्वरूप मानकर लिपि को भी नमस्कार किया है / इस सूत्र की व्याख्या-टीका लिखने वाले धुरंधरविद्वान नवांगी टीकाकार पूज्यपाद अभयदेवसूरिजी महाराज ने भी सूत्रकार महर्षि द्वारा किये गये मंगल के अनुरूप ही टीका रची है, कि"नमो बंभीए लिवीए" ऐसा शास्त्रकार द्वारा मंगल किया गया है और प्राचीन प्रतियों में भी इसी प्रकार का पाठ मिलता है / इन सब बातों से स्पष्ट सिद्ध है कि स्थापना निक्षेप रूप ब्राह्मी लिपि को भी शास्त्रकार महर्षि ने द्रव्य भावं मंगलं स्वरूप माना है। फिर भी इस निःसन्देह सत्य तथ्य पर भी प्राचार्य ने खंड 2, पृ० 170 से 172 तक में लम्बीचौड़ी मनघडंत कल्पना चलायी है, और पूर्वाचार्यों को झूठा करने का दुस्साहस किया है कि
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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