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________________ [प्रकरण-२० ] नमो बंभीए लिवीए यद्यपि शास्त्र स्वयं मंगल स्वरूप हैं, फिर भी विघ्नों की शान्ति हेतु पूर्वाचार्यों ने शास्त्र के आदि, मध्य एवं अन्त में लिपि में लिखकर भी द्रव्य और भाव मंगल की प्रशस्त प्रवृत्ति की है। श्री भगवती सूत्र में स्वयं शास्त्रकर्ता महर्षि ने "नमो बंभीए लिवीए"-यानी बाह्मी लिपि को नमस्कार-ऐसा लिखकर द्रव्य-भाव मंगल किया है / किन्तु स्थापना निक्षेप को द्रव्य-भाव मंगल स्वरूप न मानने वाले स्थानकपंथी प्राचार्य हस्तीमलजी शास्त्रकर्ता के इस कथन पर स्वमान्यता विरोध के कारण बहुत रुष्ट हैं / पूज्य शास्त्रकार महर्षि के उक्त कथन को झूठा करने हेतु प्राचार्य ने बहुत सी प्राचीन प्रतियां भी ढूढ डाली हैं, ऐसा उन्होंने खंड 2, पृ० 170-171 पर स्वीकार भी किया है, किन्तु उन्हें कहीं पर कोई विरोध का अंश नहीं मिला / अगर कहीं एक प्रति में भी विरोध का अल्पसा आधार मिल जाता तो क्या था ? प्राचार्य हो-हा का शोर करने में ही अपना श्रेय समझते, किन्तु उनका यह प्रयास भी मसफल ही रहा। अंततो गत्त्वा असत्य का सहारा लेकर खंड 2, पृ० 170 पर प्राचार्य व्यर्थ की कल्पित कल्पनाएँ करते हैं कि xxxहो सकता है शास्त्र लिपिबद्ध हुए होंगे तब पीछे से "बमो बेभीए जिबीए" पास साम्ब में घुसा दिया होमा। *
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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