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________________ प्रस्तावना 11 8. भाषा का प्राधार : पाठ-निर्णय में भाषा का प्राधार सबसे महत्त्वपूर्ण आधार है / पाठ-निर्णय के लिये कुछ भाषा-सम्बन्धी प्राधारों का उल्लेख नीचे किया जाता है : (1) पाठ-भेद प्रवृत्ति : कुछ लिपिकारों तथा क्षेपककारों में मूल रचना से सर्वथा भिन्न पाठ कर देने की प्रवृत्ति होती है / इसके अनेक कारण होते हैं, पर मुख्यतः यह कभी तो अर्थ समझने में न आने पर किया जाता है और कभी प्रमाद या व्यक्तिगत रुचि के कारण:(क) अर्थ न समझने के कारणमूल- प्रति सुकमाल पसम पडवडी (153) (सं० सूक: कमल) B- , शुकमाल पक्षम (शुक ... =तोते का पर) E- कोमल सबल पसम पडवडी (प्रर्थ स्पष्ट है) (ख) व्यक्तिमत प्रमाद या रुचि के कारण__मूल - ऊषर क्षेत्र न लागइ बीज / विण झगडा नवि थापइ धीज (42) यहां रेखांकित शब्द उपयुक्त हैं। यहां 'खेत्र' के स्थान पर B प्रति में 'क्षेत्र' (भिन्न अर्थ) 'लागई' के स्थान पर 5 प्रति में 'उगै', 'झगडा' के स्थान पर प्रति मे 'झगडई तथा E प्रति में 'झगडे' पौर, 'थापई' के स्थान पर प्रति में 'होवई' पाठान्तर तथा पाठ-भेद हो गये हैं। इसी प्रकार 'ए ऊषाणु संख्या दीठ' (58) में 'अंख्या दीठ' के स्थान पर प्रति में 'साचो दीठ' पाठ लिपिकार की प्रमाद-प्रवृत्ति का द्योतक है। (2) पाठान्तर प्रवृत्ति : भाषा के प्राचीन रूपों के व्यवहार से मुक्त हो जाने पर लिपिकाल के समय लिपिकार उनसे विकसित नवीन रूपों का प्रयोग कर लेता है। इसी प्रकार कभी तत्सम रूपों के प्रति उसकी रुचि तथा उसकी स्थानीय बोली का प्रभाव और उसकी उच्चारण प्रवत्ति मादि अनेक कारणों से एक ही रचना की भिन्न-भिन्न प्रतियों में पाठान्तर हो जाते हैं / कुछ का उल्लेख यहां किया जाता है (क) प्रव्यवहृत प्राचीन रूपों के स्थान पर नवविकसित या प्रचलित रूपों का प्रयोग : मूल-प्रवग - B,C,D, - एवा, E इतने करावडे - CD -करावो (-) कहवाडे- B,C - कहवागे (-3), D.E-कहावो (-पी) मजुमालह- B, - उजवामद, C-उपवाल, E उजाल
SR No.032833
Book TitleGora Badal Padmini Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemratna Kavi, Udaysinh Bhatnagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1997
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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