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________________ गोरा बादल पदमणि पपई हो जाता है। इसी प्रकार दसवें पद में 'वसुधा लोचन जेसु विसाल में 'जेसु विसाल' के स्थान पर B प्रति का पाठ जस 'सुविशाल' गति भंग दोष के कारण अमान्य है। (2) इसी प्रकार पहले दोहे में वयणसगाई अलंकार पाठ-निर्णय में सहायक हुमा है : सुख संपति दायक सकल, सिधि बुधि सहित गणेस / विधन विडारण विनयसुं, पहिली तुझ प्रणमेस // 1 // इसमें 'विघन विडारण विनयसु' के स्थान पर B प्रति का पाठ 'विधन विडारण सुखकरन' अथवा E प्रति का पाठ 'विधन विडारण रिधिकरण' कर देने से उक्त अलंकार की स्थिति नष्ट हो जाती है, जब कवि ने वीर रस को रचना में वयणसगाई को प्राथमिकता देने की परम्परा का निर्वाह किया है। (3) रस का प्राधार भाव है / अतः भाव-व्यञ्जना के लिये शब्द और अर्थ में सामंजस्य आवश्यक है / बादल के इन गाज भरे शब्दों में देखिये - "सुणि बाबा" ! बादिल कहइ, "सुभटासु कुण काम ? सुभट सहू सूए रहजे, ए करिस्युं हुं काम // 408 // इसमें 'सुभटा सुकुण कॉम' के स्थान पर E प्रति के 'अवरां केहो काम' तथा 'बैसि रही सारा सुहड' में प्रत्यक्ष भावाभिव्यक्ति न होने से बादल के उत्साह का भाव सीधा ग्रहण नहीं होता। 7. शैली और परम्परा का प्राधार : वीर-रस की रचना होने पर भी कवि ने जैन-शैली की भाषा-परम्परा और लेखन-परिपाटी के प्रति प्राग्रह दिखाया है। इस सम्बन्ध में प्रागे प० च० को भाषा के अन्तर्गत सविस्तार वर्णन है। नीचे कुछ ऐसे प्राचीन रूपों को दिया जाता है जो आग्रह पूर्वक प० प० में रखे गये हैं, और जिनके प्रति मन्य प्रतियों में यह प्राग्रह नहीं दीख पड़ता:-- मूल - प्रम्ह B,C,D.E, - हम / जबकि इसके विपरीत मूल 'अम्हि' के स्थान ___D, -हमने पर B, C, D, E, में 'अम्है', B में 'मम्ह' 'C में 'अम्हें और D, E में 'हम' भी मिलते हैं प्राविड़े B-प्राविमो, C, D-मावियो कृतरीड़े B-तरीयो,C,D- उतरीयौ। E ऊतरीयो उत३, कुतर्यो। सदपि B,C,D- जलव / B.C- समु} B सागर / दरिया जनषि
SR No.032833
Book TitleGora Badal Padmini Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemratna Kavi, Udaysinh Bhatnagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1997
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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