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________________ सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान अधिक से अधिक छह आवली तक जो बिगड़े हुए सम्यक्त्व का किंचित् स्वाद मिलता है; वह सासादन गुणस्थान है।" सासादन की संक्षिप्त परिभाषा करें तो सम्यक्त्व विराधक परिणाम ही सासन गणस्थान है। सम्यक्त्व विराधक जीव की सम्यक्त्वरूपी रत्नपर्वतशिखर से पतित मिथ्यात्वरूपी भूमि के सन्मुख दशा को सासन या सासादन गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान की परिभाषा में जो सम्यक्त्व को रत्नपर्वत की उपमा दी है, उसका अभिप्राय यह है कि जिसप्रकार रत्नपर्वत अनेक रत्नों को उत्पन्न करनेवाला और उन्नत स्थान पर पहुँचानेवाला है; उसीप्रकार सम्यक्त्व भी केवलज्ञानादि अनेक गुणरत्नों को उत्पन्न करनेवाला और सब से उन्नत मोक्षस्थान पर पहुँचानेवाला है। 25. प्रश्न : सासादन गुणस्थानवर्ती जीव विपरीत अभिप्राय से दूषित है; इसलिए उसे सासादनसम्यक्त्व नहीं कहना चाहिए। उत्तर : यहाँ सम्यक्त्व कहने का कारण मात्र यह है कि वह पहले सम्यक्त्वी था; इसलिए भूतनैगमनय की अपेक्षा उसे सम्यक्त्व की संज्ञा बन जाती है। वह काल भी अभी सम्यक्त्व का चल रहा है एवं दर्शनमोहनीय का यहाँ उपशम ही है। जैसे परीक्षार्थी को पेपर देने का समय तीन घंटे का है और कोई विद्यार्थी दो घंटे में पेपर लिखकर घर चला जाय तो भी शेष एक घण्टा काल पेपर का काल ही कहा जायेगा। चारित्र अपेक्षा विचार - इस सासादन गुणस्थान में श्रद्धा यथार्थ न होने से ज्ञान, चारित्र आदि सर्व गुणों का परिणमन मिथ्यारूप ही होता है। चारित्र आदि सर्व गुण एवं जीवादि द्रव्य तो स्वभाव से अनादिअनंत शुद्ध ही है / गुणों में एवं द्रव्य में मिथ्या अथवा सम्यक्पना का कोई प्रश्न ही नहीं है। मिथ्या या सम्यक्पना अथवा शुद्धता या अशुद्धता तो पर्याय में ही आती है, यह पर्याय धर्म है। ___ यदि द्रव्यों या गुणों में मिथ्यापना अथवा अशुद्धता आ जाय अथवा स्वभाव से द्रव्य या गुण अशुद्ध हो तो वह उनका स्वभाव हो जायेगा; तब फिर उनके शुद्ध होने का कोई उपाय ही नहीं हो सकता। अत:
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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