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________________ गुणस्थान विवेचन उत्तर : सम्यक्त्व की विराधना मिथ्यात्व से होती है - यह सामान्य कथन है। यहाँ करणानुयोग की विवक्षा से विशेष कथन किया है। करणानुयोग के अनुसार अनंतानुबंधी कषाय का उदय भी सम्यक्त्व के नाश में निमित्त है। आचार्य श्री वीरसेनस्वामी ने धवला पुस्तक एक पृष्ठ 172 पर अनन्तानुबंधी कषाय को द्विस्वभावी कहा है। अर्थात् अनंतानुबंधी कषाय सम्यक्त्व और सम्यक्त्वाचरण चारित्र दोनों को घातने में निमित्त है। इसीकारण ऊपर अनंतानुबंधी के भी उदय से औपशमिक सम्यक्त्व की विराधना होती है- ऐसा कहा गया है। इस विषय में धक्ला का मूल कथन इसप्रकार है - दंसण-चरण गुणघाई चत्तारि अणंताणुबंधि पयडीओ अप्रत्याख्यानावरणादि कषाय के उदय-प्रवाह को अनंत करनेरूप कार्य अनंतानुबंधी कषाय करता है। (धवला पुस्तक 6, पृष्ठ 43) ___ अनंतानुबंधी कषाय का उदय कब होता है ? इस तरह काल की अपेक्षा से पूछा जाये तो इस परिभाषा में ही उसका स्पष्ट उत्तर दिया गया है। जब औपशमिक सम्यक्त्व के अंतर्मुहूर्त काल में से जघन्य एक समय, दो, तीन, चार, पाँच समय अथवा छह आवली काल शेष रहे और अनंतानुबंधी कषाय का उदय आवे तो सासादन गुणस्थान होता है। सासादन गुणस्थान को सासनसम्यक्त्व भी कहते हैं। सासन का शब्दार्थ इसप्रकार है। स = सहित, असन = सम्यक्त्व की विराधना / स + असन = सासन / सासनसम्यक्त्व = सम्यक्त्वविराधक परिणाम / समयसार नाटक चतुर्दश गुणस्थानाधिकार में सासादन गुणस्थान का कथन 20 वें छंद में किया है। उसका अभिप्राय यह है “जिसप्रकार कोई भूखा मनुष्य शक्कर मिली हुई खीर खावे और वमन होने के बाद उसका किंचित् मात्र स्वाद लेता रहे। उसीप्रकार चौथे, पाँचवें, छठवें गुणस्थान पर्यंत चढे हुए किसी उपशमी सम्यक्त्वी को अनंतानुबंधी कषाय का उदय होता है तो उसी समय वहाँ से मिथ्यात्व में गिरता है; उस गिरती हुई दशा में जघन्य एक समय और
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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