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________________ मिथ्यात्व गुणस्थान धवला पुस्तक 1 का अंश (पृष्ठ 162-163) सामान्य से गुणस्थान की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि जीव हैं / / 9 / / जिनदेव संपूर्ण प्राणियों का अनुग्रह करनेवाले होते हैं; क्योंकि वे वोतराग हैं। ___'मिथ्यादृष्टि जीव हैं' यहाँ पर मिथ्या, वितथ, व्यलीक और असत्य ये एकार्थवाची नाम हैं। दृष्टि शब्द का अर्थ दर्शन या श्रद्धान है। इससे यह तात्पर्य हुआ कि जिन जीवों के विपरीत, एकान्त, विनय, संशय और अज्ञानरूप मिथ्यात्व कर्म के उदय से उत्पन्न हुई मिथ्यारूप दृष्टि होती है, उन्हें मिथ्यादृष्टि जीव कहते हैं। जितने भी वचन-मार्ग हैं उतने ही नय-वाद अर्थात् नय के भेद होते हैं और जितने नयवाद हैं उतने ही पर-समय (अनेकान्त-बाह्य-मत) होते हैं। इस वचन के अनुसार मिथ्यात्व के पांच ही भेद हैं यह कोई नियम नहीं समझना चाहिए; किन्तु मिथ्यात्व पांच प्रकार का है, यह कहना उपलक्षणमात्र है। अथवा, मिथ्या शब्द का अर्थ वितथ (खोटा) और दृष्टि शब्द का अर्थ रुचि, श्रद्धा या प्रत्यय है। इसलिये जिन जीवों की रुचि असत्य में होती है उन्हें मिथ्यादृष्टि कहते हैं। ___ मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से उत्पन्न होनेवाले मिथ्यात्वभाव का अनुभव करनेवाला जीव विपरीत-श्रद्धावाला होता है। जिसप्रकार पित्तज्वर से युक्त जीव को मधुर रस अच्छा मालूम नहीं होता है; उसीप्रकार उसे यथार्थ धर्म अच्छा मालूम नहीं होता है। ___ जो मिथ्यात्व कर्म के उदय से तत्त्वार्थ के विषय में अश्रद्धान उत्पन्न होता है अथवा विपरीत श्रद्धान होता है, उसको मिथ्यात्व कहते हैं। उसके संशयित, अभिगृहीत और अनभिगृहीत इसप्रकार तीन भेद हैं।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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