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________________ X गुणस्थान विवेचन भ्रमण शेष हो, उसे सम्यक्त्व उत्पन्न नहीं होता है। ज्ञानी हो अर्थात् साकार उपयोगवान हो, निराकार दर्शन उपयोगी को सम्यक्त्व उत्पन्न नहीं होता है। ऐसे जीव को सम्यक्त्व की उत्पत्ति होती है।" 2. मिथ्यात्व गुणस्थानवर्ती सभी जीव बहिरात्मा ही हैं। आत्मा को आत्मा न मानकर शरीरादि पर वस्तुओं में जो अपनत्वादि करते हैं, उन्हें बहिरात्मा कहते हैं। प्रथम तीन गुणस्थानवर्ती जीव बहिरात्मा ही हैं। बहिरात्मा नियम से दुःखी तो हैं ही, उन्हें पापी भी कहते हैं। 3. कुदेव-कुगुरु-कुशास्त्र के उपासक सभी गृहीत मिथ्यादृष्टि ही होते हैं। रागी-द्वेषी देवी-देवताओं के किसी भक्त का विशेष पुण्योदय हो और वचनादि चतुराई से बाह्य में कुभेष धारण करके अनेक लोगों का गुरु बन गया हो; हजारों और लाखों बड़े धनवान, राजादिक भी उसके अनुयायी हो गए हों तो भी सर्वज्ञ भगवान के आज्ञानुसार वह मिथ्यादृष्टि, पापी, बहिरात्मा, संसारमार्गी ही है; ऐसे गुरु नामधारी लोगों के प्रभाव में आना मिथ्यात्वभाव का स्पष्ट पोषण करना ही है।, दया, सज्जनता, परोपकार, देशसेवा तथा सामाजिक कार्य इत्यादि लौकिक कार्यों से समाज में श्रेष्ठ हो जाना, यश प्राप्त कर लेना अलग बात है और तत्त्वज्ञ बनकर मोक्षमार्गी हो जाना अलग बात है। आत्मार्थी, धर्ममार्गी का लौकिक यश-प्रतिष्ठा आदि से कुछ भी संबंध नहीं है। __लौकिक में अतिशय महान व्यक्ति मिथ्यादृष्टि हो सकता है और समाज में जिसे कोई पहिचानता ही न हो, अतिशय उपेक्षित हो, वह भी मोक्षमार्गी हो सकता है। संक्षेप में इतना समझ लेना चाहिए कि पूर्वबद्ध पुण्योदय के कारणमात्र से कोई धार्मिक नहीं हो सकता। 4. मिथ्यादृष्टि मनुष्य गर्भकाल सहित आठ वर्ष पर्यंत मिथ्यात्व नष्ट करने में असमर्थ रहता है। संज्ञी, पंचेन्द्रिय, पर्याप्त तथा संमूर्छन तिर्यंच अंतर्मुहूर्त पर्यंत मिथ्यात्व नष्ट करने में असमर्थ रहता है। देव नारकी भी अंतर्मुहूर्त पर्यंत मिथ्यात्व नष्ट करने में असमर्थ रहते हैं। विशिष्ट काल व्यतीत होने पर विशिष्ट पात्रता के बाद पुरुषार्थ पूर्वक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति कर सकते हैं।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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