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________________ आत्मनिवेदन विगत अनेक वर्षों से करणानुयोग के महत्त्वपूर्ण विषय गुणस्थान सम्बन्धी कक्षा लेने का सौभाग्य मुझे विभिन्न शिक्षण शिविरों के अवसर पर मिलता रहा है। प्रारम्भ में तो मात्र श्री कुन्दकुन्द-कहान दिगंबर जैन तीर्थसुरक्षा ट्रस्ट, मुंबई द्वारा जयपुर में आयोजित शिविरों में ही यह कक्षा चलती थी; लेकिन पाठकों की बढ़ती हुई जिज्ञासा को देखते हुए अब प्रत्येक शिविर की यह एक अनिवार्य कक्षा बन चुकी है। इसीतरह मैं जहाँ भी प्रवचनार्थ जाता हूँ, वहाँ भी गुणस्थान प्रकरण को समझाने का आग्रह होने लगता है। समाज की इसप्रकार की विशेष जिज्ञासा ने ही मुझे इस विषय के और अधिक अध्ययन हेतु प्रेरित किया। श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय में शास्त्री प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम के अन्तर्गत गुणस्थान प्रकरण के अध्यापन के निमित्त से भी मेरा इस विषय का चिन्तनमनन बढ़ता गया। इसी का फल यह 'गुणस्थान-विवचेन' है। गुणस्थान-विवेचन के माध्यम से गुणस्थान की कक्षा लेने का/समझाने का रस कुछ और ही है। अब मैं पाठकों को “इतने पेज पढ़कर आओगे तो विषय सुलभता से समझ में आयेगा' - ऐसा कहता हूँ। विशेषकर पण्डित टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय के विद्यार्थियों को पढ़ाने में, उन्हें गुणस्थान विषय की तैयारी कराने में विशेष अनुकूलता हो गयी है / अब विद्यार्थी गुणस्थान की भूमिकारूप प्रश्नोत्तर तो याद करते ही हैं, साथ ही साथ गुणस्थान-विवेचन अध्याय का समझा हुआ विषय (प्रत्येक गुणस्थान का) अपने शब्दों में आत्मविश्वासपूर्वक सुनाते हैं / इसतरह गुणस्थान-विवेचन के कारण गुणस्थान संबंधी विषय समझना एवं समझाना अब और भी सुलभ हो गया है। ___मैंने यह गुणस्थान-विवेचन करणानुयोग की विशेष जानकारी रखनेवालों में से ब्र. हीराबेन इन्दौर, ब्र. विमलाबेन जबलपुर, पं. राजमलजी जैन भोपाल, पं. किशनचंदजी अलवर, पं. पी. एल. वैद्य मलकापुर, पं. मनोहरराव मारवडकर नागपुर आदि विद्वानों को आद्योपान्त दिखाया और उनके महत्त्वपूर्ण सुझावानुसार संशोधन भी कर लिया है; अत: मैं इन सबका आभारी हूँ। पं. राजमलजी ने तो समग्र पुस्तक दो-दो बार सूक्ष्मता से पढ़ी है और सुझाव भी दिये हैं। इस पुस्तक को तीन अध्यायों में विभाजित किया है - (1) सम्यःजानचन्द्रिका की पीठिका, (2) महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर एवं (3) गुणस्थान विवेचन / सर्वप्रथम पीठिका में आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी विरचित सम्यग्ज्ञान-चन्द्रिका की पीठिका को पुर्नसम्पादित करके प्रश्नोत्तरों के साथ दिया है, जिससे पाठकों को समझने में और सुलभता होगी।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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