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________________ योजनाशक्ति और उद्यम तथा जड की सहायता द्वारा सर्जन होता है, संचालन होता है / संक्षेप में कहें तो अनादि काल से जड की सहायता और जीव का पुरुषार्थ, इन दोनों के सहयोग से जगत् में सर्जन-संचालन चलता रहता है / जीव की जैसी बुद्धि व उद्यम होता है उसी उसी प्रकार की जीव पर जड कर्म की रज चिपकती रहती है / कर्म के उदय पर जीव को वैसे वैसे जड पदार्थो का संयोग मिलता है और पुरुषार्थ से नया नया सर्जन व संचालन होता रहता है / उदाहरण के लिए, माली तो जमीन में केवल खाद डालकर बीज वोता है, व पानी पीलाता है, किन्तु समय जाने पर भिन्न-भिन्न वर्ण, रस, आकृतिवाले पौधे, पत्ते, फूल आदि व्यवस्थित रूप में केसे तैयार होते हैं? वहाँ मानना होगा कि वे पौधे, पत्ते, पुष्प आदि भिन्नभिन्न जीवों के शरीररूप हैं जो अपने -अपने कर्म से निर्मित है / इससे सिद्ध होता है कि जीव, उनके कर्म, व जड़ पदार्थ मिलकर के यह सर्जन होता है / शरीर-निर्माण के लिए बीज-खाद-भूमि आदि में से व वातावरण में से पुद्गल स्कन्ध आहार के रूप में लिए जाते __उसी प्रकार धरती के भीतर विविध मिट्टी, धातुएँ, पाषाण आदि जो उत्पन्न होते हैं वे भी पृथ्वीकायिक जीवों का शरीर ही है / उन जीवों के कर्म की विचित्रता से वैसा-वैसा व्यवस्थित सर्जन हुआ है / वैसे ही पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति के व्यवस्थित सर्जन के 280
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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