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________________ आर्त-रौद्र आदि चार प्रकार के ध्यान में से प्रत्येक पर, दश बारह बातों पर आधारित सुन्दर प्रतिपादन किया गया है / इसमें एकएक ध्यान के अधिकारी, लिंग, लक्षण, फल आदि और विशेष रूपेण शुभध्यान के विषय पर विस्तार पूर्वक विचार किया गया है / इससे यह भी ज्ञात होता है कि अशुभ ध्यान की स्थिति को शुभध्यान में कैसे परिवर्तित किया जा सके / श्री 'सन्मतितर्क' की टीका, 'शास्त्रवार्ता' तथा 'अध्यात्मसार' में धर्मध्यान के दश प्रकार बताए गए है, जिनमें से घटित प्रकार को ग्रहण कर आर्त, रौद्र के प्रस्तुत प्रकार से बचकर शुभ ध्यान की ओर जा सके ऐसा संभव है / धर्मध्यान के दस प्रकार : 1-2. अपायोपाय, 3 - 4. जीवाजीव, 5. विपाक, 6. विराग, 7. भव, 8. संस्थान, 9. आज्ञा व 10. हेतु विचय / / इनका ध्यान करने के लिए अपाय आदि पर मन को केन्द्रित करके इस प्रकार चिंतन करना चाहिए - 1. अपायविचय :- 'अहो! अशुभ मन, वचन, काया और इंद्रियों की विशेष प्रवृत्तियों से अर्थात् विशेष कोटि के अशुभ विचार-वचनवर्ताव से और इंद्रिय - विषयो के संपर्क से कितने भयंकर अपाय (अनर्थ) उत्पन्न होते हैं / इन को मैं क्यों मोल लूं?' 32 2830
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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