SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ से बौद्ध धर्म, ईसामसीह नामक व्यक्ति से ईसाई धर्म, शिव से शैव धर्म, विष्णु से वैष्णव धर्म, हजरत मुहम्मद से इस्लाम धर्म, इसी प्रकार अन्य अनेक धर्म विशिष्ट व्यक्तियों के नाम से प्रसिद्ध हुए / परंतु इस प्रकार जैन धर्म 'ऋषभ' नाम के व्यक्ति या 'पार्श्व' नाम के व्यक्ति अथवा 'महावीर' नामक व्यक्ति के कारण ऋषभधर्म, पार्श्व धर्म, किंवा महावीर धर्म के रूप में विख्यात नहीं हुआ / वस्तुतः 'जैन' -धर्म गुण- निष्पन्न नाम है / "जो राग-द्वेषादि आभ्यंतर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है वह 'जिन' कहलाता है / " जिन द्वारा कथित धर्म 'जैन धर्म' कहलाता है, और जैनधर्म की उपासना करनेवाले को जैन कहते हैं / जैसे सागर में सब नदियां समा जाती है, वैसे ही जैन धर्म में सभी दर्शनों का समावेश हैं / अन्य विविध दर्शन एक एक नय का आश्रय लेकर प्रवर्तित हुए हैं / जब कि जैन दर्शन सप्तनय द्वारा गुंफित है / जैनदर्शन की सूक्ष्मातिसूक्ष्म कर्मपद्धति, जीवविज्ञान सूक्ष्म तपमीमांसा, नवतत्त्व का सुंदर स्वरुप, स्याद्वाद-अनेकांतवाद की विशिष्टता, अहिंसा-तप की पराकाष्ठा, योग की अद्वितीय साधना तथा व्रतों-महाव्रतों का सूक्ष्मरीति से प्ररूपणा व पालन... आदि की तुलना में आज तक कोई भी दर्शन समर्थ नहीं हो सका है / विश्व के धर्मो में सब प्रकार से यदि कोई धर्म पूर्ण धर्म हैं तो बह जैन धर्म ही है / विश्वशांति का मार्ग प्रदर्शित करने की क्षमता रखनेवाला यदि कोई मार्ग है तो वह जैनधर्म के सिद्धान्तों में ही निर्दिष्ट है / 0 21
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy