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________________ जैनधर्म की प्राचीनता के प्रमाण यह बात वेद, पुराण, उपनिषद् तथा भारतीय एवं पाश्चात्त्य विद्वानों के मंतव्यों से सत्य प्रमाणित हो चुकी है कि जैनधर्म अन्य समस्त धर्मो की अपेक्षा प्राचीन है / 'जैनधर्म अने तेनी प्राचीनता' नामक पुस्तक की प्रस्तावना में पं. श्री अम्बालाल लिखते हैं - "स्पष्ट रुपेण बौद्ध धर्म हजार वर्ष पूर्व ही प्रगट हुआ है / यही नहीं, भगवान बुद्ध ने जैन सिद्धान्तों का अनुभव किया था / जैन सिद्धान्तों में प्रतिपादित मार्ग- पराकाष्ठा से उबकर (उकताकर) ही उन्होंने मध्यममार्ग प्रचलित किया / वही बौद्ध धर्म के रूप में प्रसारित हुआ / यह तथ्य ऐतिहासिक है / " वेदों में कतिपय नाम ऐसे स्पष्ट हैं कि वे जैनधर्म के तीर्थंकरो के नामों की सूचना देते हैं / श्रीमद् भागवतकार ने श्री ऋषभदेव का चरित्र अतीव स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है / उन्हें हिन्दुधर्म के 24 अवतारो में भी स्थान प्रदान किया है / इस से जैनधर्म की प्राचीन परम्परा का स्पष्ट पता चलता है / "भगवान महावीर के 11 गणधर और उनके बाद होनेवाले कई धुरंधर जैनाचार्य अधिकतर वैदिक शास्त्रों के विद्वान ब्राह्मण थे / उन्होंने अपनी (वैदिक) ज्ञान की अपूर्णता से असन्तुष्ट होकर जैन धर्म की दीक्षा अंगीकार की थी / संसार के विविधधर्म तो उन-उन मुख्य व्यक्तियों के नाम से विख्यात हुए / गौतम बुद्ध नामक व्यक्ति - 20
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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