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________________ में चतुर्विध संघके अग्रणी होते हैं। गृहवास और संसार की मोहमाया के सर्व बन्धन छोडकर वे मुनि बन कर अरिहंत द्वारा प्रतिपादित मोक्षमार्ग की साधना करते हैं। जिनागम का अध्ययन करने पूर्वक विशिष्ट योग्यता प्राप्त करके गुरूद्वारा 'आचार्य' पद प्राप्त करते हैं। आचार्य बनकर ये जगत में ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, तपाचार और वीर्याचार, इन पवित्र पांच आचारों का प्रचार करते हैं। पंचाचार के पालन में उद्यत बने व्यक्तियों को शरण देकर उनका निर्मल पालन करवाते हैं 5 इन्द्रियनिग्रह + 9 ब्रह्मचर्य गुप्ति + 4 कषायत्याग + 5 आचार + 5 समिति + 3 गुप्ति, - ये छत्तीस गुण आचार्य के हैं / इस प्रकार आचार्य की 36-36 गुणों की 36 छत्रीसी होती हैं / ___(iv) उपाध्यायः- ये चौथे परमेष्ठी है / ये भी मुनि बने हुए होते है, तथा जिनागम का अध्ययन करके गुरु से 'उपाध्याय' पद को प्राप्त करते हैं | राजा के सदृश आचार्य के ये मन्त्री के समान बनकर मुनियों को जिनागम-सूत्र का अध्ययन कराते हैं / इनमें 25 गुण होते हैं, क्योंकि ये आचारांगादि 11 अंग + 14 पूर्व (जो १२वें दृष्टिवाद का एक मुख्य भाग है) = 25 का पठन-पाठन करते हैं। (v) साधु :- ये पांचवें परमेष्ठी हैं / इन्होंने मोहमाया से भरे हुए संसार का त्याग करके आजीवन अहिंसादि महाव्रतों का स्वीकार किया है / ये पवित्र पंचाचार का पालन करते हैं, इसके पालनार्थ 1760
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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