SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षय से 8 गुण होते हैं / तो भी 'परमेष्ठी नमस्कार' यानी नवकार मंत्र में अरिहंत को प्रथमपद पर और सिद्ध को द्वितीय पद पर इसलिए स्थापित किये हैं कि अरिहंत भगवान के उपदेश से ही दूसरे भव्य जीव भी मोक्षमार्ग की आराधना द्वारा सर्वकर्मो का क्षय करके सिद्ध होते हैं / एवं अरिहंत के धर्मशासन की आराधना द्वारा ही आचार्य -उपाध्याय -साधु बनते हैं / अतः श्रेष्ठ उपकारी 'अरिहंत' को प्रथमपद में स्थान दिया है / / (ii) सिद्ध ये दूसरे परमेष्ठी है / 'सिद्ध' का अर्थ है 'सित' = बद्ध को 'ध्मात' = धमनेवाले, यानी बंधे हुए कर्मो को जला देने वालें; अर्थात् कर्म से मुक्त शुद्ध आत्मा / जो आत्मा 'अरिहंत' न बन सके वह भी अरिहंत के उपदेशानुसार मोक्षमार्ग की साधना करके आठों कर्मो का नाश कर सकती है। बाद मोक्ष प्राप्त करती है, तब वह 'सिद्ध' आत्मा हुई; वह सर्वथा शुद्ध, बुद्ध, निरंजन, निर्विकार, निराकार स्थिति प्राप्त करके 14 राजलोक के मस्तक पर सिद्धशिला पर शाश्वत काल के लिए स्थिर हो जाती हैं; उसे 'सिद्ध' परमात्मा कहते हैं / ऐसे सिद्ध परमात्मा में 8 गुण जैसे कि-अनन्त ज्ञान, अनन्तदर्शन, अनंत चारित्र (वीतरागता), अनन्त लब्धि, अव्याबाध अनन्त सुख, अक्षय अजर-अमर स्थिति, अरुपीता व अगुरुलघुता, - ये आठकर्मो के नष्ट हो जानेके कारण होते हैं / (iii) आचार्यः- ये तीसरे परमेष्ठी है। वे अरिहंत प्रभु की अनुपस्थिति 0 1750
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy