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________________ 49 से 60 ...6 समय तक 97 से 102 ...2 समय तक 69 से 72 ...5 समय तक 103 से 108...1 समय तक इतने समय के बाद अन्तर अवश्य पडता है / अर्थात् जघन्यतः एक समय तक कोई भी मोक्ष नहीं जाता / 45 लाख योजनप्रमाण मनुष्यलोक में से ही (1) मनुष्य ही मोक्ष जाते है / लोक के शिखर पर सिद्धशिला भी, इसी माप की हैं / (2) भरत और ऐरावत क्षेत्र में तीसरे और चोथे आरे में ही जन्म लेने वाले मोक्ष जाते हैं / महाविदेह क्षेत्र में सदा मोक्षमें जा सकते हैं / (3) यथाख्यात चारित्रवाले केवली ही मोक्ष जाते है / (4) किसी भी आत्मा की सिद्धि होने के बाद अधिक से अधिक छ: माह में दूसरी आत्मा की सिद्धि होती हैं / (5) जितनी आत्मा सिद्ध होती हैं उतनी आत्मा अनादि निगोद अर्थात् अव्यवहार राशिमें से बाहर निकलती है / अब अल्पबहुत्व पर दूसरी रीति से विचार करें / किसी देव द्वारा क्षेत्रान्तर में संहरण होकर सिद्ध हुए जीवों की अपेक्षा जन्म -क्षेत्र में सिद्ध , उर्ध्व लोक की अपेक्षा अधोलोक में सिद्ध, उनकी अपेक्षा ति लोक में सिद्ध, समुद्र की अपेक्षा द्वीपों में से सिद्ध, उत्सर्पिणी अवसर्पिणी की अपेक्षा महाविदेह में से सिद्ध (उत्सर्पि 0 की अपेक्षा अवस 0 में विशेषाधिक), तिर्यंच में से मनुष्य बनकर सिद्ध PR 15880
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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