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________________ घाती-अघाती कर्म : ज्ञानावरण आठ कर्म में दो विभाग होते हैं | घाती और अघाती / 'घाती' का अर्थ है आत्मा की निर्मलता यानी परमात्मभाव के गुण ज्ञानदर्शन-वीतरागता का एवं चारित्र और वीर्यादि का घात करनेवाले / 'अघाती' अर्थात् इनका घात न करनेवाले। मोक्ष-सुख आत्मा का गुण है तो भी इसका रोधक वेदनीयकर्म परमात्मापन का घातक नहीं / अतः यह घाती नहीं / घाती-चार कर्म घाती हैं - ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय / शेष वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र ये चार अघाती कर्म ज्ञानावरण के उदय से ज्ञान का रोध होगा ही, और मिथ्यात्व के उदय से 'सम्यक्त्व' गुण का रोध होगा ही; अतः वे घाती है। परन्तु अघाती जैसे कि अशाता वेदनीय अथवा अपयश नामकर्म का उदय होने पर ज्ञान, सम्यक्त्व, आदि गुणों का रोध होगा ही यह नियम नहीं है। हां, जैसे कि ज्ञान होने पर भी अपयश का उदय होने पर मूढ बन जाने के कारण इसका असर लेकर पढ़ा हुआ भूले तो ज्ञान आच्छादित हो जाए यह संभव है / किन्तु यह अपयश से मूढ नहीं लेकिन मोहनीय कर्म के उदय से मूढ, एवं इसका ज्ञान आच्छादित माना जायेगा / मोहनीय के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए / जैसे कि अशाता, दौर्भाग्य, अपशय आने पर मूढ बनकर हम कषाय करें, तभी क्षमादि गुणों का आवरण होता है / 0 1300
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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