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________________ से अंग्रहित हैं। इतना विशाल संग्रह किसी भी ज्ञानभंडार के लिये गौरव का विषय हो सकता हैं। आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी ने अपनी भारत-भर की पदयात्रा के दौरान छोटे-छोटे गाँवों में असुरक्षित, उपेक्षित एवं नष्ट हो रही भारतीय संस्कृति की यह अनूठी निधि लोगों को प्रेरित कर संग्रहित करवाई हैं। इनमें अनेक हस्तलिखित ग्रंथ सुवर्ण व रजत से आलेखित हैं तथा सैंकड़ों सचित्र हैं। यहाँ इन बहुमूल्य कृतियों को विशेष रूप से बने ऋतुजन्य दोषों से मुक्त कक्षों में पारम्परिक ढंग से विशिष्ट प्रकार की काष्ठ-मंजूषाओं में संरक्षित करने की प्रक्रिया चल रही हैं। क्षतिग्रस्त प्रतियों को रसायनिक प्रक्रिया से सुरक्षित करने की बृहद् योजना है। महत्वपूर्ण ग्रन्थों की माइक्रोफिल्म, काम्प्यूटर स्केनिंग आदि भो करने का आयोजन हैं। आर्य सुधर्मास्वामी श्रुतागार : ज्ञानमंदिर में भूतल पर विद्वानों आदि हेतु कक्ष/उपकक्ष सहित पाठकों के लिए अध्ययन की सुन्दर व्यवस्था युक्त यह ग्रंथालय हैं। यहाँ कुल मिला कर एक लाख से ज्यादा मुद्रित प्रतें एवं पुस्तकें हैं। ग्रंथालय में भारतीय संस्कृति, सभ्यता, धर्म एवं दर्शन के अतिरिक्त विशेष रूप में जैन धर्म से सम्बन्धित सामग्री सर्वाधिक हैं। इस सामग्री को इतना अधिक समृद्ध किया जा रहा हैं कि कोई भी जिज्ञासु यहाँ आकर जैनधर्म से सम्बन्धित अपनी जिज्ञासा पूर्ण कर सकें। ___ आर्यरक्षितसूरि शोधसागर : ज्ञानमंदिर में संग्रहित हस्तलिखित ग्रंथों तथा मुद्रित पुस्तकों की व्यवस्था करना एक बहुत ही जटिल कार्य हैं। लेकिन ग्रंथ सरलता से उपलब्ध हो सके इसके लिये कम्प्यूटर आधारित बहुउद्देशीय श्रुत अनुसंधान केन्द्र ज्ञानमंदिर के द्वितीय तल पर कार्यरत हैं। ग्रंथालय सेवा में कम्प्यूटर का महत्त्व वर्तमान समय में अत्यंत आवश्यक हो गया हैं। हस्तलिखित व मुद्रित ग्रंथों, उनमें समाविष्ट कृतियों तथा पत्र पत्रिकाओं का विशद सूची-पत्र एवं विस्तृत सूचनाएँ अपने आप में अनोखी पद्धति से विश्व में प्रम बार कम्प्यूटराईज की जा रही हैं। इसके परिणाम स्वरूप प्रकाशन, कृति, कर्ता, संपादक, प्रकाशक, प्रकाशन वर्ष, ग्रंथमाला, कृति के आदि व अंतिम वाक्यों, रचना स्थल, रचना वर्ष आदि से संबद्ध किसी की भी कम से कम दो अक्षरों की जानकारी होने पर इनसे परस्पर संबद्ध अन्य विवरणों की विस्तृत सूचनाएँ बहुत ही सुगमता से उपलब्ध होते देख विद्वद्वर्ग आश्चर्यचकित रह जाता हैं। दर्शकों एवं विद्वानों ने यहाँ की व्यवस्था की भूरी-भूरी प्रशंसा की है तथा 17.
SR No.032789
Book TitlePadma Vardhaman Sanskrit Dhatu Shabda Rupavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajpadmasagar, Kalyanpadmasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2008
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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