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________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-७८ चरित्रवान् है तो इस प्रशस्ति में भी उत्तम पुरुषों के चरित्र हैं / रमणी एवं यह प्रशस्ति दोनों ही विरति एवं मधुरता से भरी हुई हैं / / 40 // संवत् 1053 माघ शुक्ल 13 रविदिने पुष्यनक्षत्रे श्रीऋषभदेवनाथदेवस्य प्रतिष्ठा कृता महाध्वजश्चारोपितः ॥मूलनायकः।। नाहजिंदजसशप पूरभद्रनगपोचिस्थ श्रावक गोष्ठिकरशेषकर्मक्षयार्थ स्वसंतानभवाब्धितरणार्थं च न्यायोपाजितवित्तेन कारितः // ___ संवत् 1053 विक्रमी को माघ सुदी 13 रविवार पुष्यनक्षत्र में श्री ऋषभदेव की प्रतिष्ठा की गई एवं महाध्वज का आरोपण किया गया / / मूलनायक / / नाहक, जिंद, जस, शंप, पूरभद्र व नगपोची आदि श्रावकों ने अपने अशेष कर्मों का क्षय करने के लिए एवं अपनी संतान को संसार सागर से पार उतारने के लिए न्याय से उपाजित धन से यह प्रतिष्ठा करवाई। टिप्पणी-इस शिलालेख में प्रतिष्ठा करवाने के अर्थ में "कारितः" शब्द का प्रयोग किया गया है। श्लोक सं. 36 में भी "विदग्धनृपकारिते" शब्द का प्रयोग किया गया है इसका अर्थ है विदग्धराजा के द्वारा प्रतिष्ठा करवाई गई जैसे देवाः प्रियः यस्य स देवप्रियः, स चासौ ब्राह्मणश्चेति देवब्राह्मणः अर्थात् देवता जिसको प्यारे हैं ऐसा ब्राह्मण, देव--प्रिय ब्राह्मण पर संस्कृत में शाकपार्थिवादि समास में उत्तर पद का लोप हो जाता है। “विदग्धनृपकारिते" का समस्त पद खोलने पर होगा विदग्धनृप-प्रतिष्ठाकारिते विदग्धनृपकारिते / इससे यह सिद्ध होता है कि विदग्ध ने भी इस मन्दिर को प्रतिष्ठा ही करवाई थी न कि इसका नवनिर्माण किया था। इस प्रशस्ति को सूर्याचार्य ने बनाया है।
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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