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________________ शिलालेख सं 398 वि. सं.६७३ व 666 परवादिदर्पमथनं हेतुनयसहस्रभंगकाकीरणं / भव्यजनदुरितशमनं जिनेन्द्रवरशासनं जयति // 1 // अन्य वादियों (ताकिकों) के दर्प को मथ कर नवनीत रूप एक निश्चय को पहुंचाने वाले हजारों हेतुओं एवं नयों के भङ्गों से युक्त, भव्य जनों के पाप का शमन करने वाले जिनेन्द्र भगवान के शासन (धर्म) की जय हो / / 1 / / आसीद्धीधनसंमतः शुभगुरणो भास्वत्प्रतापोज्ज्वलो, विस्पष्टप्रतिभः प्रभावकलितो भूपोत्तमांगाचितः / योषित्पीनपयोधरांतरसुखाभिष्वंगसंलालितो, यः श्रीमान्हरिवर्म उत्तममणिः सदशहारे गुरौ।।२।। श्रेष्ठ वंश रूपी हार में श्रेष्ठ मणि के समान, बुद्धिमानों में मान्य, शुभगुणों से युक्त, प्रतापाग्नि से प्रकाशमान, प्रतिभाशाली, प्रभावयुक्त, राजाओं के मस्तकों से पूजित एवं रमणियों के पीन पयोधरों के बीच आलिंगनों से परिपालित श्रीमान् हरिवर्मा नाम के राजा हुए / / 2 / /
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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