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________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-७४ अचूक निशाने की इच्छा वाले भील आदि की मोक्षाभिलाषा आश्चर्यमयी होती है पर सूरिजी अपने मार्ग पर अविचल भाव से रह कर निर्वाण की इच्छा करते हैं / अतः धर्माभ्यासी उन महात्मा का गुणानुराग उचित ही है / / 31 / / कमपि सर्वगुरणानुगतं जनं विधिरियं विदधाति न दुविधः / इति कलंक निराकृतये कृती यमकृतेव कृताखिलसद्गुरणं 32 दुर्भाग्यशाली ब्रह्मा ने आज तक किसी भी सर्वगुणसम्पन्न पुरुष को उत्पन्न नहीं किया है / अतः इस कलंक को मिटाने के लिए उत्तमगुणधारी इन सूरिजी का निर्माण किया // 32 / / तदीयवचनान्निजं धनकलत्रपुत्रादिक, विलोक्य सकलं चलं दलमिवानिलांदोलितम् / गरिष्ठगुणगोष्ठ्यदः समुददीधरद्धीरधी, रुदारमतिसुदरं प्रथमतीर्थकृन्मंदिरम् // 33 // उन वासुदेवसूरि के उपदेश से अपने धन, स्त्री एवं पुत्रपौत्र सबको हवा से हिलते हुए पत्तों की तरह चञ्चल क्षणभंगुर जानकर उस गुणवान् एवं बुद्धिमान् राजा ने विशाल एवं सुन्दर ऋषभदेव भगवान के मन्दिर का उद्धार किया / / 33 / / रक्तं वा रम्यरामारणां मरिणतारावराजितं / इदं मुखमिवाभाति भासमानवरालकम् // 34 / / / यह मन्दिर मणियों से दीप्त एवं घुघराले केशों से युक्त सुन्दर स्त्रियों के मुखमण्डल की तरह मनोहर प्रतिभासित होता है / / 34 / /
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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