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________________ शिलालेख-७३ मन्येऽमुना मुनीन्द्र रण मनोभूरूपनिजितः / स्वप्नेऽपि न स्वरूपेण समगस्तातिलज्जितः // 26 // मेरी ऐसी मान्यता है कि इन मुनिराज के द्वारा रूप से पराजित कामदेव स्वरूप में आना नहीं चाहता (कामदेव को शिवजी ने जला दिया था। अतः वह अशरीरी है। यहां यह माना गया है कि सूरिजी की सुन्दरता से पराजित हो कर वह शरीर प्राप्त करना नहीं चाहता) // 26 / / प्रोद्यत्पद्माकरस्य प्रकटितविकटाशेषहा[भा] वस्य सूरेः, सूर्यस्येवामृतांशु स्फुरितशुभरुचि वासुदेवाभिधस्य / अध्यासीनं पदव्यां यममलविलसज्ज्ञानमालोक्य लोको, लोकालोकावलोकं सकलमचकलत्केवलं संभवीति // 30 // विकसित सूर्य तथा संसार के गूढ़ ज्ञान को प्रकट करने वाले उन सूरि की पाट पदवी पर सूर्य के समान अमृतमय प्रकाश वाले, शुभ रुचि को विकसित करने वाले वासूदेवसरि नाम के प्राचार्य प्रासीन हुए जिनके निर्मल ज्ञान को देखकर सम्पूर्ण संसार ने उन्हें सम्पूर्ण ज्ञान को जानने वाला केवलज्ञानी ही माना॥३०॥ धर्माभ्यासरतस्यास्य संगतो गुरणसंग्रहः / अभग्नमार्गणेच्छस्य चित्रं निर्वाणवांच्छता // 31 // 1, ये वासुदेवसूरि बलिभद्रसूरि ही थे बलिभद्रमुनि नू सारिउ काम दीधु वासुदेवसूरिनाम / हस्ति कुण्डी एहवउ अभिधान थापिउ गच्छपति प्रगट प्रधाना // बलिभद्ररास 120 चौपाई
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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