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________________ शिलालेख-६७ दिवाकरस्येव करैः कठोरः करालिता भूपकदम्बकस्य / अशिश्रियंतापहृतोरुतापं यमुन्नतं पादपवज्जनौघा // 14 // जिस प्रकार सूर्य की कठोर किरणों से सन्तप्त हुए लोग ताप के निवारण हेतु उन्नत वृक्ष का आश्रय लेते हैं वैसे ही राजसमुदाय से सन्तप्त जनता धवल राजा की शरण में आती है / / 14 / / धनुर्द्धरशिरोमणेरमलधर्ममभ्यस्यतो, जगाम जलधेर्गुणोगुरुरमुष्य पारं परम् / समीयुरपि संमुखाः सुमुखमार्गणानां गणाः, सतां चरितमद्भुतं सकलमेव लोकोत्तरम् // 15 // निर्मल धर्म का अभ्यास करने वाले उस धनुर्धर शिरोमरिण राजा धवल के गुण, समुद्र के भी पार चले गये अर्थात् बहुत दूर-दूर तक फैल गये और उनके सम्मुख याचक उनके पास आने लगे। संस्कृत में गुण का अर्थ डोरी भी होता है। धनुर्धारी बाण फेंकने के लिए डोरी अपने कान के समीप खींचते हैं तो मार्गण (बाण) दूर जाता है पर धवल राजा के गुण दूर जाते हैं एवं उनके मार्गण (याचक) समीप आते हैं। सज्जनों का सम्पूर्ण चरित्र ही अद्भुत एवं लोकोत्तर होता है / / 15 / / पात्रासु यस्य वियदोगविषुर्विशेषात्, वलगत्तुरंगखुरखातमहीरजांसि / तेजोभिरूज्जितमनेन विनिज्जितत्वात्, भास्वान विलज्जित इवातितरां (विजय)तिरोभूत् / 16 /
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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