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________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-६६ मूलराज ने विशाल सेना वाले घमण्डी धरणीवराह राजा' को उसी तरह मूल से उखाड़ दिया जिस प्रकार हाथी पेड़ को मूल से उखाड़ देता है / पर अपनी शरण में आने पर धवल राजा ने धरणीवराह राजा को उसी तरह शरण दी थी जिस प्रकार वराहवतार ने अपनी दाढों से पृथ्वीमण्डल को शरण देकर उबारा था / / 12 / / इत्थं पृथ्वीभर्तृ भिर्नाथमानैः सा...सुस्थितंरास्थितो यः / पाथोनाथो वा विपक्षात्स्वपक्षं रक्षाकांक्षरीक्षणे बद्धकक्षः 13 इस प्रकार वह धवलराज, राजाओं से त्राण चाहने वाले राजाओं को शरण देने वाला अथवा विपक्ष से स्वपक्ष को बचाने वाला व रक्षितों के रक्षण में तत्पर है / / 13 / / 1. यह धरणीवराह चित्तौड़ का राजा था (कुम्भा, पृष्ठ १०,रामवल्लभ सोमानी) / मूलराज सोलंकी पाटग की गद्दी पर वि.सं. 1017 में बैठा / यह बड़ा प्रतापी राजा था। मूलराज ने वि.सं. 1026 में चित्तौड़ पर कब्जा किया था। यह धरणीवराह परमार नरेश नहीं है क्योंकि धरणीवराह धारावर्ष परमार आबू के परमार राजा कृष्णराज के पुत्र यशोधवल का पुत्र था (कांठल का शिलालेख, अजमेर म्यूजियम)। कृष्णराज 1124 वि. सं में प्राबू पर राज्य करता था। धरणीवराह यह नहीं है क्योंकि धरणीवराह परमार के साथ मूलराज का कोई युद्ध नहीं हुआ। नाडोल के केल्हण की पुत्री शृङ्गारदेवी का विवाह परमार धारावर्ष के साथ हुा / सिरोही के अन्तर्गत झाड़ोली ग्राम के आसोज सुदी 7 बुधवार सं 1255 के शिलालेख के अनुसार धारावर्ष की पत्नी मन्दिर में दर्शनार्थ आई थी एवं मन्दिर के खर्च के लिए एक बाड़ी भेंट की थी अतः यह धरणीवराह धारावर्ष परमार इस घटना के बाद का है।
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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