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________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-६४ उस विदग्ध राजा के महान् पराक्रमी मम्मट नाम का राजा हुआ / तलवार के धनी श्रेष्ठ भावों वाले इस राजा ने समुद्रपर्यन्त विजय प्राप्त की। अथवा इस राजा ने अपनी शुद्ध शक्ति से समुद्र को भी जीत लिया। समुद्र की लहरें तो सामान्य हैं पर इसके हृदय-सागर की लहरें सतोगुण से युक्त हैं। समुद्र का पानी तो खारा है पर इसका तेज तो प्रशंसनीय है।।८।। तस्मादसमः समजनि[समस्त]जनजनितलोचनानन्दः / धवलो वसुधाव्यापी चन्द्रादिव चन्द्रिकानिकरः // 6 // जिस प्रकार चन्द्रमा से समस्त पृथ्वी को आलोकित करने वाली चाँदनी का समूह उत्पन्न होता है वैसे ही धवल यशवाले उस मम्मट राजा के प्रजा को आनन्दित करने वाला अनुपम धवल नाम का कुमार उत्पन्न हुआ / / 6 / / भक्त्वा घाट घटाभिः प्रकटमिव मदं मेदपाटे भटानां, जन्ये राजन्यजन्ये जनयति जनताजं रणं मुञ्जराजे'। ....... प्रणष्टे हरिण इव भिया गूर्जरेशे विनष्टे, तत्सैन्यानां सशरण्यो हरिरिव शरणे यः सुराणां बभूव // 10 // 1. 1026 विक्रमी में मालवा के मुज ने चित्तौड़ पर कब्जा किया। मुज की मृत्यु वि. सं. 1050 से 1054 के मध्य हुई। उसकी सभा के पंडित धनपाल ने तिलकमजरी लिखी।
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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