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________________ शिलालेख-६३ हुआ / जैसे बालसूर्य कमलों की प्रतिपक्षी कमलिनियों की प्रभा का हरण कर लेता है वैसे ही विदग्ध ने भी शत्रुओं की स्त्रियों के मुख की कान्ति का हरण कर लिया अर्थात् उसने अपने समस्त प्रतिपक्षियों को पराजित कर दिया / / 5 / / स्वाचार्यो रुचिरवचनैर्वासुदेवाभिधान--- बर्बोधं नीतो दिनकरकरैर्नोरजन्माकरो वा। पूर्व जैनं निजमिव यशोकारयद्धस्तिकुण्ड्यां, रम्यं हम्म्यं गुरुहिमगिरेः शृगशृगारहारि // 6 // जैसे सूर्य की किरणों से नीरजन्मा कमल विकसित होता है वैसे ही वासुदेवाचार्य नाम के प्राचार्य के सुन्दर उपदेश से विदग्धराज को ज्ञान प्राप्त हुआ। उसने अपने हस्तिकुण्डी नगर में हिमालय के शिखरों का भी मान मर्दन करने वाला तथा अपने ऊंचे यश के समान उच्च शिखर वाला अपूर्व एवं अनुपम जिन मन्दिर बनवाया / / 6 / / दानेन तुलितबलिना तुलादिदानस्य येन देवाय / भागद्वयं व्यतीर्यत भागश्चाचार्यवर्याय // 7 // वह राजा दान देने में बलि के समान है / वह अपने द्वारा दिए गए तुलादान के दो भाग देवता के लिए व एक भाग प्राचार्यप्रवर को दिया करता था / / 7 / / तस्मादभूच्छुद्धसत्त्वो मम्मटाख्यो महीपतिः / समुद्रविजयो श्लाघ्यतरवारिः सम्मिकः / / 8 / /
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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