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________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-४० इस राजा ने ही सर्व प्रथम अपने वजन के बराबर सोना तोल कर तुलादान किया और मन्दिर के लिए दानपत्र लिखा / इन तथ्यों की पुष्टि इसी पुस्तक के आगामी पृष्ठों में शिलालेखों के अनुवाद से होगी। मम्मटराज विदग्धराज के बाद उसका पुत्र मम्मटराज राजा हुआ। उसने वासुदेवसूरि की पूजा कर दूसरा दानपत्र जारी किया कि मेरे पिताश्री विदग्धराज ने जो दान-शासन जारी किया है उसका बराबर पालन करना प्रजा का धर्म है / मम्मटराज ने सर्वप्रथम प्रजा को यह भी बताया कि देवद्रव्य एवं गुरूद्रव्य का भक्षण करना महापाप है। मम्मट के राज्यकाल में ही प्राचार्य सर्वदेवसूरि इस नगरी में पधारे थे। उनके उपदेश से हस्तिकुण्डी के राव जगमाल ने परिवार सहित जैनधर्म अंगीकार किया था। धवलराज धवलराज मम्मटराज का पुत्र था। यह बहुत बलवान राजा था। मालवा के मुञ्ज ने मेवाड़ आकर आहड़ का मान भङ्ग किया तब धवलराज ने चित्तौड़ के राजा धरणीवराह की सहायता की। गुजरात का मूलराज सोलंकी भी इससे डरता था। यह दीनदुखियों का रखवाला और अशरण को शरण देने वाला था। धनुर्विद्या में निष्णात धवलराज परम दानी भी था। धवलराज ने आचार्य शान्तिारि के उपदेश से अपने दादा विदग्धराज द्वारा प्रतिष्ठित मन्दिर के जीर्ण होने पर
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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