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________________ हस्ति कुण्डी के प्राचार्य-३३ श्री रायमलजी विराजमान हैं। उनके पुत्र महाराजकुमार श्री पृथ्वीराजजी की आज्ञा से प्रोसवाल वंश के रायजड़ारी (राय भण्डारी) गौत्र के रावल श्री लाखण पुत्र श्री सं. दूद वंशे म० मयूर पुत्र म० सार्दूल, एवं उसके दो पुत्रों ने नाडलाई नगरी में सं. 964 में श्री यशोभद्रसूरि द्वारा मंत्रशक्ति से लाये गये एवं सायर श्रावक द्वारा बनवाई गई देहरीका उद्धार किया एवं सायर नाम की जैन बस्ती में श्री ऋषभदेव भगवान की स्थापना की। उसकी प्रतिष्ठा प्राचार्य श्री शान्तिसरि की पाट परम्परा के देवसुन्दर अपर नाम ईश्वरसूरि ने की। इस लघु प्रशस्ति को प्राचार्य ईश्वरसूरि ने लिखा एवं सोमाक सोमपुरा ने खोदा। शुभम् / कविवर लावण्यसमयजी ने अपने यशोभद्ररास में आ० यशोभद्रसूरि की माता का नाम गुणसुन्दरी व पिता का नाम पुण्यसार लिखा है पर इस लेख के अनुसार उनकी माता का नाम सुभद्रा था (सुभद्राकुक्षिसरोवरराजहंस :) / संडेरकगच्छ में शालिसूरि, सुमतिसूरि, शांतिसूरि और ईश्वरसूरि ये चार नाम बार-बार आते हैं / इस बात की पुष्टि ईश्वरसूरि ने अपने सुमित्र चरित्र में अन्त में दी गई प्रशस्ति में इस प्रकार की है : एवं चतुर्नामभिरेव भूयो भूयो बभूबुबहुशोऽत्रगच्छे सूरीश्वराः सूरिगुणैरुपैता पवित्रचारित्रधरा महान्तः / ___ अर्थात् इस गच्छ में बारम्बार इसी तरह सूरिगुणों से युक्त और पवित्र चारित्रधारी क्रम से चार नाम वाले आचार्य
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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