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________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-३२ अनुवाद गुरु श्री यशोभद्रसूरि की चरण पादुकाओं को नमस्कार हो / संवत् 1567 के वैशाखमास की सुद 6 को शुक्रवार व पुनर्वसु नक्षत्र के चन्द्रयोग में संडेरकगच्छ में कलिकाल के गौतमस्वामी के अवतार, समस्त भविजनों के मनरूपी कमलों को खिलाने में सर्य के समान, समस्त लब्धियों के भण्डार. युगप्रधान अनेक ताकिकों को, जोतने वाले, अनेक राजाओं के नमस्कार करते समय मुकुटों से चरणस्पर्श होने वाले, सूर्य के समान महादानी, चौसठ इन्द्रों द्वारा यशोगान गाये जाने वाले, श्री संडेरक गच्छ के ज्ञानियों के आभूषण, मातासुभद्रा के कुक्षि-सरोवर के राजहंस, यशोवीर, साधूकूलगगन के चन्द्र, समस्त चरित्रधारियों में चक्रवर्ती, वक्ताओं में सर्वोत्कृष्ट, महाप्रभावी प्रभु श्री यशोभद्रसूरि हुए। उनकी पाट परम्परा में चाहमान वंश के शृगार, समस्त विद्याओं में पारंगत श्री बदरी देवी द्वारा दिये गए गुरुपद से सुशोभित, अपने विमल वंश को ज्ञान देने से अनेक यशोवाद प्राप्त करने वाले श्री शालिसूरि महाराज हुए। उनके श्री सुमतिसूरि-शान्तिसूरि-ईश्वरसूरि क्रम से गुणमणियों के शिखर पर चढ़ने वाले महान् सूरियों के वंश में (पाट परम्परा में) फिर शालिसूरि-श्री सुमतिमूरि हुए। उनके पट्टालंकार श्री शांतिसूरिजी सशिष्यमण्डल विराजमान हैं / इस समय श्री मेवाड़ देश में सूर्यवंशी महाराजाधिराज श्री शिलादित्य के वंश में श्री गुहिदत्त-श्री बप्पारावल, श्री खुमान महाराणा के वंश में राणा हम्मीर श्री खेतसिंह, श्री लाखा के पुत्र मोकल चन्द्रवंशियों को प्रकाशित करने वाले, प्रताप में सूर्य के अवतार, समुद्र पर्यन्त पृथ्वीमण्डल का भोग करने वाले, अतुल बलशाली राणा श्री कुम्भाजी के पुत्र राणा
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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