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________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-३० ये ही यशोभद्रसूरि बलिभद्रसूरि [वासुदेवसूरि] के गुरु थे जिन्होंने हस्तिकुण्डी गच्छ की स्थापना की थी। वासुदेवाचार्य द्वारा प्रतिष्ठित गच्छ का नाम हस्तिकुण्डी गच्छ एवं उनके गुरु द्वारा स्थापित गच्छ का नाम संडे रकगच्छ है। नारलाई (नन्दकुलवती) की श्मशान भूमि में आज भी दो स्तूप खड़े हैं जिनमें से एक पर केवल 'सूरियशोभद्राचार्यादि' ही पढ़ने में प्राता है / गुरु एवं शिष्य दोनों में प्रारम्भ में खूब विवाद रहा। गोडवाड़ में जसिया और केसिया सम्बन्धी कई दन्तकथाएँ आज भी चल रही हैं। इन दन्तकथाओं के सभो चमत्कार इन गुरु-शिष्य के चमत्कारों से मिलते-जुलते हैं। जसिया से यशोभद्रसूरि एवं केसिया से केशवसूरि अर्थात् वासुदेवसूरि ग्रहण होना चाहिए / नाड़लाई की पश्चिम दिशा में गांव के बाहर ऋषभदेव भगवान का भव्य मन्दिर है। इस मन्दिर के रंगमण्डप के दक्षिण की तरफ स्तम्भ पर एक शिलालेख है जिसमें संरक- . गच्छ एवं यशोभद्रसूरि प्रभृति प्राचार्यों का वर्णन है। लेख की चौडाई 6 इंच व लम्बाई 4 फुट आठ इंच है। इस प्रशस्ति के रचयिता ईश्वरसूरि हैं एवं समय स. 1567 वैशाख शुक्ला 6 / लेख इस प्रकार है : // श्रीयशोभद्रसूरिगुरुपादुकाभ्यां नमः / / संवत् 1567 वर्षे वैशाखमासे शुक्लपक्षे षष्ठ्यां तिथी शुक्रवासरे पुनर्वसु ऋक्ष प्राप्त चन्द्रयोगे श्री संडेरगच्छे कलिकाल गौतमावतार समस्त भविकजनमनोऽम्बुजविबोधनक दिनकर
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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