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________________ हस्तिकुण्डी के प्राचार्य-२१ श्रीअञ्चलागच्छीय मोटी पट्टावली में लिखा है कि वि. सं. 1208 में प्राचार्य महाराज जयसिंहदेवसूरिजी अपने गुरु महाराज की आज्ञा से अपने शिष्य-परिवार सहित विचरते हुए हस्तिकुण्डी नगरी में पधारे। उस समय यहाँ अनन्तसिंह राठौड़ राज्य करता था। वह पूर्व-कर्म के विपाक से जलोदर के भयकर रोग से पीड़ित था। जब यह समाचार प्राचार्य महाराज तक पहुँचा तो वे करुणा से द्रवित होकर रोगनिवारण हेतु राजमहल में गए। आचार्यश्री ने प्रासुक जल मँगवाया। उसे अभिमंत्रित कर महारानी को देते हुए उन्होंने कहा कि इसे राजा को पिलाने व लगाने से लाभ होगा। इस जल के सेवन से राजा का रोग दूर हो गया। इससे प्रभावित होकर अनन्तसिंह अपने परिवार सहित प्राचार्यश्री को वन्दन करने आए। राजा और रानी ने सविनय निवेदन किया कि वे जनधर्म अङ्गीकार करना चाहते हैं। गुरु महाराज के उपदेश से हस्तिकुण्डी के श्रीसंघ ने अनन्तसिंह को प्रोसवाल जाति में मिला लिया / इस राजा के वंशज रातड़िया राठौर या हथु डिया राठौड़ के नाम से आज भी ओसवालों में विद्यमान हैं। ___आचार्यों की पट्टावलियों को देखने से ज्ञात होता है कि इस नगरी में श्री सिद्धसूरि जी, श्री कक्कसूरिजी, श्री देवगुप्तसूरिजी और श्री सर्वदेवसूरिजी प्रभृति साधु-महाराजों ने जनहित एवं धर्मप्रभावना के कार्य किए। इतिहास-प्रेमी श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज के अनुसार विक्रम संवत् 623 में भयङ्कर दुष्काल पड़ा। उस समय प्राचार्य महाराज श्री देवगुप्तसूरीश्वरजी ने इस प्रदेश में पशुओं को घास एवं मनुष्यों को अन्नदान की व्यवस्था करवाई जिससे दुष्काल सुकाल में परिणत हो गया। विक्रम सं. 778 में
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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