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________________ 48. नैषधीयचरिते अनुवाद--'वह ( दमयन्ती ) मेरे लिए मर मिट गई' यह ( समाचार) तुम्हारे कानों में कैसे नहीं पड़ेगा? यदि इस समय न सही, तब तो संभवतः तुम मेरे ऊपर थोड़ी-सी दया द्वारा मुझे अनुगृहीत करोगे ही // 99 / / टिप्पणी-मेरे मरने के बाद मेरी इतनी याद यदि कर लोगे कि वह बेचारी मेरे प्रेम पर बलिदान हो गई, तो इतने मात्र से मैं अपने को कृतकृत्य हुआ समझ लूंगी। 'कथा' 'कथं' में छेक 'पथं कथं' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / / 99 // ममादरीदं बिदरीतुमान्तरं तर्थिकल्पद्रुम ! किंचिदर्थये। भिदां हृदि द्वारमवाप्य मा स मे हतासुभिः प्राणसमः समं गमः // 10 // अन्वयः-मम इदम् आन्तरम् विदरीतुम् आदरि ( अस्ति ) तत् हे अर्थि समम् प्राणसमः स ( त्वम् ) मागमः / टीका-मम मे इवम् एतत् आन्तरम् हृदयम् विदरीतुम् विदीर्णीभवितुम्, स्फुटितुमिति यावत् आदरि आदरवत्, विदरीतुमुत्सुकमस्तीत्यर्थः तत् तस्मात् अहम् दमयन्ती त्वाम् किञ्चित् किमपि अर्थये याचे / त्वया मे याचना पूरयितव्या कल्पवृक्षस्य सर्वकामनापूरकत्वस्वभावादिति भावः / हृदि हृदये भिवाम् भेदम्, विदरण-रूपं द्वारम् मार्गम् अवाप्य प्राप्य मे भम हतः नष्ट: असुभिः प्राणः ( कर्मधा० ) समं सह स मम नाथस्त्वमित्यर्थः मा गमः न गच्छ / हृदये स्फुटिते सति गच्छद्भिः प्राणः सह त्वयाऽपि न गन्तव्यम्, हृदये एव स्थातव्यमिति भावः // 100 // व्याकरण-आन्तरम् अन्तरमेवेति अन्तर + अण ( स्वार्थे ) / विदरीतुम् विकल्प से दीर्घ ('वृतो वा' 72 / 38) / आदरि आदरोऽस्यास्तीति आदर + इन् ( मतुबर्थ ) / भिवाम्/भिद् + अङ् (भावे)+ टाप् / द्वारम् यास्क के अनुसार 'वारयतीति सतः/वृ + णिच् + अच् दकारागम निपातित / असुभिः अस्यन्ते इति/ अस् + उन् / मा गमः/ गम् + लुङ माङ् के योग में अडागमनिषेध / अनुवाद-"मेरा यह हृदय फट जाने को तय्यार हुआ बैठा है, इसलिए हे
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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