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________________ 458 नषधीयचरिते अन्वयः-हे सारसाक्षि ! अनल: याजक-फूत्कृति-श्रमम् अपार्थयन् रुषा ज्वलेत, वपुषा अपि ( न ज्वलेत् ) चेत् (तर्हि) तव विवाहे नलः अग्निसाक्षिकम् कम् विधिम् कर्तुम् अलम् ( भवेत् ) ? टीका-सारसम् कमलम् ('सारसं सरसीरुहम्' इत्यमरः) तद्वत् अक्षिणी नयने ( उपमान तत्पु० ) यस्याः तत्सम्बुद्धी (ब० वी० ) हे सारसाक्षि। अनलः अग्निः याजकानाम् पुरोहितानाम् या फूत्कृतिः अग्निसमिन्धनार्थम् मुखेन फूत्करणव्यापारः तस्य धमम् आयासम् ( उभयत्र ष० तत्पु० ) अप = अपगतः अर्थ: प्रयोजनम् यस्येति अपार्थः ( प्रादि ब० वी० ) तं करोतीति अपार्थयन् व्यर्थतां नयन् रुषा क्रोधेन ज्वलेत् प्रज्वलितो भवेत्, वपुषा शरीरेण ज्वालात्मकेन कार्यदेहेन अपि न ज्वलेत् ज्वाला-रूपेण प्रदीप्तो न भवेत् घूमात्मक एव तिष्ठेदिति भावः चेत् तहि तव ते विवाहे पाणिग्रहणसंस्कारे नल: वरः न अग्नि: ज्वलत् वह्निः साक्षी साक्षाद् द्रष्टा ( कर्मधा० ) यस्मिन् तथाभूतम् (नन ब० वी०) कम् विधिम् अनुष्ठानम् लाजाहोमादिकमिति यावत् कम् संपादयितुम् अलम् समर्थः भवेत् न कमपीति काकुः / विवाह-विधिः अग्निसाक्षिक एव भवति न पुनघूमसाक्षिक इति भावः / / 80 // ____ व्याकरण-सारसम्--सरसः इदमिति सरस् + अण् / याजकः याजयतीति यज् + णिच् + ण्वुल ( कर्तरि ) फूत्कृतिः फूत् + V + क्तिन् ( भावे ) / अपाथयन् अपार्थं करोतीति अपार्थ + णिच् (नामधा० ) + शतृ / साक्षीइसके लिए पीछे श्लोक 68 देखिए। अनुवाद-'कमलाक्षी ! अग्निदेव पुरोहितों के फूक मारने के प्रयत्न को बेकार करते हुए यदि रोष से ही प्रज्वलित होवें, शरीर ( ज्वाला-रूप ) से भी नहीं, तो तुम्हारे विवाह के समय नल अग्नि की साक्षी से प्रमाणित की हुई कौन-सी विधि कर सकेंगे?" // 80 // टिप्पणी-शास्त्रानुसार विवाह-विधि-लाजा होम आदि अग्नि को साक्षी बनाकर ही सम्पन्न होती हैं। अग्नि के रुष्ट होने पर पुरोहित फूक मारकर थक जाएंगे, ज्वाला नहीं उठेगी, धुआं ही निकलता रहेगा तो तुम्हारा विवाह वैध नहीं ठहराया जा सकेगा। 'सारसाक्षि' में लुप्तोपमा, 'रुषा, पुषा' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास, 'नल:' 'नलः' में यमक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है // 80 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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