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________________ अष्टमः सर्गः एव खण्ड: इक्षुविकारविशेष: खाँड इति भाषायां प्रसिद्धः जातः किमु ? ( 'स्यात् खण्ड: शकले चेक्षुविकार-मणिदोषयोः' इति विश्वः) तस्याः वाण्याः यः पन्थाः मार्गः तस्मिन् ( 10 तत्पु० ) शर्करा उपललघुखण्डाः कर्परांशाः एव शकरा इक्षुविकार-विशेषः ('शर्करा खण्डविकृतावुपला कर्परांशयोः' इति विश्वः ) किम् ? तस्याः वाण्याः भङ्गिः वक्रोत्क्यादिभरिता रचना ( 10 तत्पु० ) तया तज्जनित इत्यर्थः यो रसः शृङ्गारादि अथ च जलम् ( तृ० तत्पु० ) तस्मात् उत्तिष्ठतीति तथोक्तम् ( उपपद तत्पु० ) यत् कच्छतृणम् ( कर्मधा० ) / कच्छस्य जलप्रायदेशस्य तृणम् तत् दिक्षु दिशासु 'इक्षु' इति नाम / प्रथितम् विख्यातम् न ? अपितु प्रथितमेवेति काकुः // 101 / / व्याकरण ---खण्डः खण्डयते इति / खण्ड + घञ् (कर्मणि) / तत्पथ० पथिन् शब्द को समासान्त अप्रत्यय / ०रसोत्य उत्तिष्ठतीति उत् + /स्था + क, स को पूर्वसवर्ण / कच्छः केन = जलेन छाद्यते इति क + Vछद् ( निपातित ) दिक्षु दिशन्ति (ददति अवकाशम् ) इति /दिश् + क्विप् ( कर्तरि ) स० व० / अनुवाद-“हे कृशाङ्गी ! तुम्हारी ( मधुर ) वाणी का खण्ड ( लेश ) ही खण्ड ( खाँड ) है क्या ? उस ( वाणी ) के मार्ग की शर्करा ( कंकड़ियाँ ) ही शर्करा ' शक्कर ) है क्या ? उस ( वाणी ) की भङ्गि ( वचनप्रकार ) से निकल रहे रस ( शृगारादि; जल ) से उत्पन्न जो कच्छ-प्रदेश का तृण है, वह दिशाओं में 'इक्ष' नाम से प्रसिद्ध नहीं ( है क्या ) ? // 101 // टिप्पणी-यहाँ कवि देवताओं के माध्यम से दमयन्ती की वाणी के माधुर्य को खाँड, शक्कर और गन्ने के रस से भी उत्कृष्ट बता रहा है। इस सम्बन्ध में वह यहाँ निरक्त की-सी प्रक्रिया अपना रहा है अर्थात् 'खण्डः कस्मात्' ? 'तहाग्याः खण्डत्वात्' 'शर्करा कस्मात् ?' 'तद्वाणीमार्गगतशर्करात्वात्' 'इक्षुः कस्मात् ?' 'तद्वाणीरसजन्यतृणत्वात्' / खाँड बारीक पिसी चीनी को कहते हैं / उसमें माधुर्य दमयन्ती की वाणी के लेशमात्र से आया है। शर्करा मार्ग में पड़ी पत्थरों का कंकड़ियों को कहते हैं। वाणी जब माग में आई, तो उसका माधुर्य कंकड़ियों में संक्रान्त हो गया और वही कंकड़ियाँ फिर कन्द वाली चीनी अर्थात् दानेदार चीनी प्रसिद्ध हुई। ध्यान रहे कि यहाँ कवि की कल्पना ‘खण्ड, खण्ड' 'शर्करा, शर्करा' में शब्द-साम्य पर आधुत है / उसकी वाणी से निकल रही रस
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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