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________________ नैषधीयचरिते तम् नृत्यम् नाटकमिति यावत् (10 तत्पु० ) त्वम् मिथ्याभाषितमित्यर्थः विशङ्कसे मन्यसे चेत्, तहि अन्तः हृदये चरतीति तथोक्तः अन्तर्वर्तीत्यर्थः ( उपपद तत्पु० ) पञ्चशरः कामः एव प्रमाणम् अत्र साक्षी अस्तीति शेषः वयं न 'मिथ्या ब्रूमहे, कामोहि नो हृदयस्थितो देवता प्रमाणयति वयं परमार्थतः त्वत्कृते कियदन्यन्तं पीडिताः स्म इति भावः // 94 // __ व्याकरण-त्वदर्थिनः युष्मत् + अर्थ + णिन्, युष्मत् को त्वदादेश / परस्सहस्राः सहस्र + पर सहन शब्द का परनिपात ( 'राजदन्तादिषु परम्' 2 / 2 / 31 ) पारस्करादि होने से सुडागम / प्राणाः प्र + अनन् + घन (भावे)। 'प्रसादः प्र + /सद् + घन (भावे)। कैतवम् किंतवस्य भाव इति कितव + अण / नर्तितम् नृत् + णिच् + क्तः ( भावे)। अन्तश्चरः अन्तः +/चर् + ट: ( कर्तरि ) प्रमाणम् प्रमीयसेऽनेनेति प्र+ मा+ ल्युट ( करणे)। अनुवाद--"( दमयन्ती ! ) तुम्हें चाहने वाले हजारों भले ही हों, किन्तु हमारे प्राण तुम्हारे चरणों की कृपा के अधीन हैं। इसे यदि तुम कपट का खेल समझ रही हो, तो ( हमारे ) हृदयवर्ती कामदेवता इसके साक्षी हैं ( कि यह हमारा कपट का खेल नहीं है। )" // 94 // टिप्पणी-देवताओं के कहने का भाव यह है कि अन्य कामुकों को तरह प्रेम में छल-फरेब करना हम नहीं जानते हैं। फिर भी यदि तुम्हें इसमें हमारे छल-फरेब की शंका है तो भगवान कामदेव हमारे साक्षी हैं। अतः हमारे प्राणों की रक्षा हेतु हमारा ही वरण करो अन्य का नहीं। विद्याधर के शब्दों में अत्रातिशयोक्तिरलङ्कारः / ' 'चेत्' शब्द के बल से यहाँ केतव-नतित' का देवताओं के साथ असम्बन्ध होने पर भी सम्बन्ध की संभावना की जा रही है। 'प्राणाः... प्रसादः' में हेत्वलंकार है, क्योंकि प्रसाद कारण और प्राण उसका कार्य होते हुए दोनों का अभेद बताया जा रहा है / कार्य-कारण के अभेद में हेतु अलंकार होता है। 'चरः शरा' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रासः अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। अस्माकमध्यासितमेतदन्तस्तावद्भवत्या हृदयं चिराय। बहिस्त्वयालं क्रियतामिदानीमुरो मुरं विद्विषतः श्रियेव / / 95 // अन्वयः-(हे दमयन्ति ! ) भवत्या अस्माकम् एतत् हृदयम् अन्तः तावत् चिराय अध्यासितम्; इदानीम् बहिः उरः त्वया श्रिया मुरं विद्विषतः ( उरः) इव अलंक्रियताम् /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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