SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 336 नैषधीयचरिते अस्ति स तदा तस्मिन् समये तुभ्यम् त्वदर्थम् चेतः मनः प्रजिधाय प्राहिणोत् यदा यस्मिन् समये गतः प्रयातः पान्थः पथिकः निवृत्य परावृत्य न एति न आगच्छति। पश्चिमदिशाभर्तुः वरुणस्यापि मनः त्वयि आसक्तमस्तीति भावः / / .80 // व्याकरण-समालम्भनन् सम् + आ + लभ् + ल्युट (भावे ) मुम् का आगम। कौतुकिन्याः कौतुकम् अस्याः अस्तीति कौतुक + इन् (मतुबर्थ ) + ङीप् / भर्ता भरतीति /भृ + तृच् ( कर्तरि ) / प्रजिघाय प्र + /हि + लिट्, ह को कुत्व / पान्थः नित्यं पन्थानं गच्छतीति पथिन् + ण, पान्थादेश / ____अनुवाद-'हे कृशाङ्गी! जो सायं समय केशर द्वारा अङ्गराग में कुतूहल रखने वाली ( पश्चिम ) दिशा का स्वामी ( वरुण ) है, वह (भी) तुम्हारी ओर मन को उस समय भेज बैठा है जब कि गया हुआ पथिक लौट कर वापस नहीं आता" / / 80 / टिप्पणी-अब यहां से लेकर चार श्लोकों में वरुण का दौत्य करता हुआ नल दमयन्ती के अनुराग में वरुण की विरहावस्था का वर्णन कर रहा है / यहाँ वरुण का सीधा नाम न लेकर उसकी उस दिशा-रूपी नायिका के पति-रूप में अवतारणा कर रहा है, जो सायं समय प्रिय के साथ मधुर मिलन से पूर्व निज को सँवारती है, 'मेक अप' करती है। वह दिशा पश्चिम है, जो कुंकुमलेपन कर रही है / कुंकुम बना सन्ध्याकालीन लालिमा हमारे विचार से सायंतन लालिमा का कुंकुम के साथ अभेदाध्यवसाय होने से यहाँ भेदे अभेदातिशयोक्ति है। विद्याधर के अनुसार 'अत्र वरुणपदे वक्तव्ये वाक्यम्, तेनात्रोजो गुणः' / "तदा' 'यदा' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। नैति निवृत्यज्योतिष शास्त्र के अनुसार स्वाति और चित्रा नक्षत्रों तथा व्यतीपात आदि योगों में यात्रा निषद्ध है। उनमें गया हुआ यात्री वापस घर नहीं आता, देखिए'नन्दन्ति न निवर्तन्ते चित्रा-स्वात्योर्गता नराः' / नल के कहने का भाव यह है कि ऐसे मुहूर्त में तुम्हारी ओर गया हुआ वरुण का मन लौटने का नाम ही नहीं लेता। तथा न तापाय पयोनिधीनामश्वामुखोत्थः क्षुधितः शिखावान् / निजः पतिः संप्रति वारिपोऽपि यथा हृदिस्थः स्मरतापदुःस्थः / / 81 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy