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________________ 21 21 अष्टमः सर्गः शरैः प्रसूनैस्तुदतः स्मरस्य स्मर्तुं स कि नाशनिना करोति / अभेद्यमस्याहह वर्म न स्यादनङ्गता चेगिरिशप्रसादः // 66 / / अन्वयः–स प्रसूनैः तुदतः स्मरस्य स्मर्तुम् अशनिना किम् न करोति चेत् अस्य गिरिशप्रसादः अनङ्गता अभेद्यम् वर्म न स्यात् अहह ? ____टीका-स इन्द्र: प्रसूनः पुष्पः तुदत: व्यथयतः स्मरस्य कामस्य स्मर्तुम् स्मृतिविषयीकर्तुम्, कामस्येति कर्मणि षष्ठी कामं स्मृतिशेषं कर्तुम् मारयितुमिति यावत् अशनिना वज्रण किं न करोति अपि तु सर्वमेव करोतीति काकुः चेत् यदि अस्य कामस्य गिरिशम्य महादेवस्य प्रसादः अनुग्रहः (10 तत्पु० ) अनङ्गता न अङ्गयस्थ ( ब० वी० ) तस्य भावः तत्ता भस्म कृत्वा शरीरराहित्यापादनमित्यर्थः अभेद्यम् भेत्तमशक्यम् वर्म कवचम् न स्यात् न भवेत् अहह ! आश्चर्य। रुष्ट इन्द्रः कामं स्ववज्रप्रहारद्वारा स्मृतिशेषतामनेष्यत्, यदि महादेवकृपया सोऽनङ्गतां न प्राप्स्यदिति भावः / / 66 / / ___व्याकरण-प्रसूनः प्र + /सू + क्त, त को न / स्मरस्य स्मर्तुम् 'अधीगर्थदयेशाम् कर्मणि' ( 2 / 3 / 52 ) से कर्म में षष्टी। गिरिशः गिरी ( कैलासे शेते इति गिरि + /शी + ड। अभेद्यम् न + /भिद् + ण्यत् / करोति, स्यात्य हाँ हेतुहेतुमद्भाव होने से क्रियातिपत्ति में लङ प्राप्त है अर्थात् सोऽस्य किं नाकरिष्यत्, यदि अनङ्गता वर्म नाभविष्यत् / ___ अनुवाद-"ओह ! वह ( इन्द्र ) फूलों द्वारा सता रहे कामदेव को स्मृतिशेष बना देने हेतु वज्र से ( उसका ) क्या नहीं कर देता, यदि महादेव के प्रसाद-रूप में (प्राप्त) अनङ्गता इसका अभेद्य कवच न बना हुआ होता' // 66 // टिप्पणो–इन्द्र काम पर बहुत ही क्रुद्ध हुआ बैठा है, किन्तु उसका कुछ नहीं कर पाता, अनंग जो ठहरा / शरीरी होता तो उस पर वज्र प्रहार करता। महादेव का काम को अनंग बना देना एक तरह वरदान ही सिद्ध हुआ। हमारे विचार से यह उल्लास अलंकार का वह भेदविशेष है जहाँ की हुई बुराई भलाई सिद्ध हो जाती है। यहाँ महादेव द्वारा काम का निग्रह अनुग्रह रूप में परिणत हो गया है। विद्याधर अतिशयोक्ति और कायलिंग लिख रहे हैं। अतिशयोक्ति इस रूप में है कि यदि-शब्द के बल से यहाँ असम्बन्ध की कल्पना की जा रही है। कारण बताने से कायलिंग स्पष्ट ही है / 'स्मरस्य' 'स्मर्तुम्' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है।
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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