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________________ 324 नैषधीयचरिते राशीन विकिरन्तः इन्द्रस्य दृष्टीनामग्रे अन्धकारं जनयन्तश्च पौर्णमासीरात्रीरपि अमावास्यारात्रीः कुर्वन्ति, कोकिलश्च 'कुहूः' इत्युच्चार्य 'कुहूः' = अमावास्यवेयम् न पुनः पौर्णमासीति प्रमाणीकरोतीति भावः // 65 // व्याकरण--इषवः इध्यन्ते ( प्रक्षिप्यन्ते ) इति / इष् + उ / शक्रः यास्क के अनुसार शक्नोतीति Vशक् + रक् / तमोमयीकृत्य तम एवेति तमोमय्यः अतमोमयीः तमोमयीः सम्पद्यमानाः कृत्वेति तमस् + मयट् + च्चि, ईत्व कृ + ल्यप् / गीः /गृ + क्विप ( भावे)। द्विजः द्वाभ्यां जायते इति द्वि+ /जन् + ड / रजनिः रज्यतेऽस्यामिति / रत् + कनि। अनुवाद--"कामदेव के बाण परागों द्वारा दिशाओं को इन्द्र की आँखों के आगे अन्धकार-पूर्ण बनाकर 'कुहू' ध्वनि वाले पक्षी ( कोकिल ) के मुख को पौर्णमासी की रात में भी सत्य बोलने वाला बता रहे हैं" / / 65 / / टिप्पणी-भाव यह है कि फूलों के पराग उड़ रहे हैं और कोयल कूक रही है। दमयन्ती के वियोग की तीव्रता एवं व्याकुलता में इन्द्र को अपने चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा दीख रहा है। पौर्णमासी की रात तक भी उसकी आँखों के आगे ऐसी अन्धकारमय बनी रहती है जैसी अमावस्या हो / जब कायल पौर्णमासी की रात को 'कुहू कुह' बोलती है तो सचाई बता देती है कि यह अमावास्या की रात है। संस्कृत में कुहू के दो अर्थ हैं-एक 'कुहू कुहू' ध्वनि और दूसरा अमावास्या। इस तरह जो रात लोगों के लिए पूर्णमासी की होती है, वह इन्द्र के लिए अमावास्या की साबित होती है। इस श्लोक की प्रथम सर्ग के श्लोक 100 के साथ तुलना करें तो बड़ा साम्य मिलेगा। यहाँ विद्याधर 'विरोधातिशयोक्त्यलंकारौ' और मल्लिनाथ 'काव्यलिङ्गश्लेषातिशयोक्तिविरोधभ्रान्तिदलङ्कारसङ्करः' लिख रहे हैं। विरोधाभास इस रूप में है कि राका सचमुच कुहू नहीं हो सकती है, वियोग की व्याकुलता में कुहु-जैसी बनना अर्थ करने से परिहार हो जाता है। अतिशयोक्ति इस तरह है कि श्लेष द्वारा दो विभिन्न कुहूओं का यहाँ अभेदाध्यवसाय हो रहा है। शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। "दिशः' 'दृशां' 'दिश' में वर्गों की एक से अधिक बार आवृत्ति वृत्त्यनुप्रास के ही अन्तर्गत होती है / द्विज शब्द को श्लिष्ट मानकर नारायण ब्राह्मण अर्थ भी लेते हुए कहते हैं—'अन्योऽपि ब्राह्मणः कमप्यन्धं प्रति पूर्णिमामवास्यां वदति, सोऽपि मूर्खत्वात् तद्वाचम् अन्यं प्रति सत्यां कथयति / हम इसे ध्वनिही कहेंगे।
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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