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________________ नैषधमहाकाव्यम् / दमयन्तीके विरहसे उत्पन्न सन्तापको सुवर्णवत् गौर वर्ण, शरीरमें हीरेके समान स्वच्छ चमकता हुआ स्वेद दूर कर देगा, क्योंकि इसी स्वेदके द्वारा दमयन्ती स्वेदका मानवगुण होनेसे नलको पहचानकर निर्णय करेगी। नलके शरीर में दमयन्तीने पसीना देखा तथा देवोंके शरीर में नहीं // 19 // सुरेषु मालाममलामपश्यन्नले तु बाला मलिनीभवन्तीम् / इमां किमासाद्य नलोऽद्य मृद्वी श्रद्धास्यते मामिति चिन्तयैव / / 20 / / सुरेविति / बाला दमयन्ती, सुरेषु मालां स्रजम, अमलाम् अम्लानाम् , अपश्यत् , नले तु अद्य स्वयंवराहे, नलः मृद्वी मदपेक्षयाऽपि सुकुमाराम , इमां दमयन्तीम आसाद्य किं किमर्थं, मां श्रद्धास्यते ? आदरिष्यते ? थञ्चिदपि नाइरिष्यते, इति चिन्तया एव, मलिनीभवन्ती म्लायन्ती, मालामिति पूर्वानुबन्धः, अपश्यत् / म्लानकुसुमत्वमन्यचिह्नमिति भावः / अत्र मालायास्तादृशचिन्तासम्बन्धासम्भवा. दुत्प्रेक्षालङ्कारः // 20 // बाला ( दमयन्ती ) ने देवोंमें मालाको निर्मल ( मलिन नहीं होती हुई ) देखा तथा नलमें 'सुकुमारी इस ( दमयन्ती ) को पाकर नल क्या मुझमें श्रद्धा अर्थात् मेरा आदर करेंगे ? अर्थात् नहीं करेंगे' इस चिन्तासे ही ( पाठा०-मानो इस चिन्तासे ) मलिन होती हुई मालाको देखा // 20 // श्रियं भजन्तां कियदस्य देवाश्छाया नलस्यास्ति तथाऽपि नैषाम् / इतीरयन्तीव तया निरैक्षि सा नैषधे न त्रिदशेषु तेषु // 21 // श्रियमिति / देवाः इन्द्रादयः, अस्य नलस्य, श्रियं सौन्दर्य, कियत् अल्पं यथा तथा, भजन्तां, तथाऽपि नलसौन्दर्यस्य किञ्चित् ग्रहणे कृतेऽपि, नलस्य छाया प्रति. बिम्बं प्रतिच्छाया इत्यर्थः / 'छाया सूर्यप्रिया कान्तिः प्रतिविम्बमनातपः' इत्यमरः / एषाम् इन्द्रादीनां, नास्ति, नलरूपधराणामपि देवानां तेजोमयत्वेन भूस्पर्शाभावात् तादृशप्रतिविम्बरूपच्छायाया असम्भवादिति भावः; इतीरयन्ती कथयन्तीव स्थिता सा छाया, प्रतिविम्बभित्यर्थः, तया दमयन्त्या, नैषधे नले, निरैक्षि दृष्टा, ईक्षतेः कर्मणि लुङ्। तेषु त्रिदशेषु इन्द्रादिषु, न, निरैक्षि इति पूर्वेणान्वयः, तेषां तैजसत्वात् न छत्रादिवदेहच्छाया क्षितितले लग्ना, नलस्य तु लग्ना इत्येकं चिह्नमिति भावः / अत्र श्रियमिव श्रियं छायेव छायेति सादृश्याक्षेपान्निदर्शने ताभ्यामङ्गाभ्यामितीरय. न्तीवेत्युत्प्रेक्षायाः सङ्करः // 21 // उस ( दमयन्ती ) ने "देव इस ( नल ) की शोभाको कितना धारण करें ? नलकी वैसी ( अतिशय प्रसिद्ध ) छाया ( शोभाका लेश ) भी इन ( देवों ) को नहीं है" ऐसी कहती हुई के समान नलमें छाया ( परछाई ) को देखा और देवोंमें (परछाईको ) नहीं देखा / 1. 'चिन्तयेव' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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