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________________ प्रथमः सर्गः। पयिक कापपीरित होकर दुर्वक हो रहे थे, अतएव 'पलमश्नाति इति पलाशः' (मासको जो खाता है, उसे 'पलाश' कहते हैं ) इस विग्रहसे उक्त पलाशवृक्षका नाम सार्थक-सा हो रहा था / 84 // नवा लता गन्धवहेन चुम्बिता करम्बिताङ्गी मकरन्दशीकरैः / दृशा नृपेण स्मितशोभिकुड्मला दरादराभ्यां दरकम्पिनी पपे / / 8 / / नवेति / गन्धवहेन वायुना चुम्बिता स्पृष्टा अन्यत्रानुलिप्तेन पुंसा वीचिता मक. रन्दशीकरैःपुष्परसकणैः करम्विताली ब्यामिश्रितरूपाअन्यत्र स्विन्नाङ्गीति च गम्यते। स्मितशोभिनः विकासरग्याः कुडमला मुकुलारदमाश्च यस्यास्तांमन्दहासमधुरदन्तमुकुला च गम्यते / दरकम्पिनी वायुस्पर्शादीषकम्पिनी सात्त्विकवेपथुमती च नवा लता वल्ली तत्सरशी कान्ता च गम्यते / नृपेण की दशा करणेन दरादराभ्यां भय. तृष्णाभ्यामुपचितेन सता पपे अवेदिता गाढं दृष्टा इत्यर्थः। उद्दीपकत्वात् दरः प्रिया. साहश्यादादरश्च / 'दरोऽत्री शङ्कभीगतेष्वरुपार्थे स्वव्ययम्' इति वैजयन्ती। अत्रप्र. स्तुतविशेषणसाम्याइप्रस्तुतनायिकाप्रतीतेः समासोक्तिरलधारः। 'विशेषणस्य तीक्ष्येन थत्र प्रस्तुतवर्णनात् / अप्रस्तुतस्य गम्यरवे सा समासोक्तिरिष्यत्' 'इति लक्षणात् // ( नायकरूप ) वायुसे चुम्बित ( स्पष्ट ), मकरन्दकणोंसे रोमानित शरीरवाली, ईषदि. कसित एवं शोममान कलिकाओंवाली, कुछ कम्पायमान नवीन ( पल्लववालो ) लताको भय (विरहियों को दुःखद होनेसे उक्त लताको देखनेसे उत्पन्न डर ) तथा ( सुन्दरता होनेसे ) आदरसे युक्त राना ( नल ) ने नेत्रसे मानो उस प्रकार पान किया अर्थात् देखा, जिस प्रकार कस्तूरी, कर, चन्दनादिकी सुगन्धिसे युक्त नायक द्वारा चुम्बित, प्रियस्पर्शसे रोमान्चित अङ्गों वाली, थोड़ा स्मित करती हुई तथा सात्त्विक मावके उत्पन्न होनेसे कुछ कम्पन युक्त नायिकाको (परस्त्री होनेसे ) भयपूर्वक तथा सुन्दरी होनेसे भादरपूर्वक कोई दूसरा नायक देखता है। ( अथवा-बाल 6-शैशव के ले शसे रहित अर्थात् युवावस्थायुक्त तरुणसे चुम्बित...) // 85 // विचिन्वतीः पान्थपतङ्गहिंसनैरपुण्यकर्माण्यलिकजलच्छ लात् / व्यलोकयचम्पककोरकावलीः स शम्बरारेबलिदीपिका इव // 86 // मरः / तेषा हिंसनः वधः अपुण्यकर्माण्येव अलयः कजलानीवेत्युपमितसमासः। तेषां छलादित्यपहवालङ्कारः। विचिन्वतीः संगृलती: हिंसापापकारिणीरित्यर्थः। चम्पक कारकावलाः शम्बरारेमनसिमस्य बलिदीपिका पूजादीपिका इस्युरप्रेक्षा, स भको यलोकयत् / / 86 // पयिकरूप पतझोंकी ( हिंसासे, भ्रमररूपी कजसके कपटसे पापकर्मको एकत्रित करशी
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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