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________________ 488 नैषधमहाकाव्यम् / प्राप्ति न होनेपर कामसन्ताप नहीं सह सकनेके कारण मुझे आत्महत्या कर लेना ही आपत्तिसे छुटकारा पानेका एकमात्र सरल उपाय है, नलके अतिरिक्त दूसरे किसीका वरण करना नहीं ] // 36 // स्त्रिया मया वाग्मिषु तेषु शक्यते न जातु सम्यग्विवरीतुमुत्तरम् / तदा मद्राषितसूत्रपद्धती प्रबन्धृतास्तु प्रतिबन्धृता न ते / / 3 / / स्त्रियेति / वाग्मिषु वावदूकेषु तेविन्द्रादिषु विषयेषु स्त्रिया मया उत्तरं सम्यक यथा भवति तथा विवरीतुं प्रपञ्चयितुं जातु कदाचिदपि न शक्यते / तत् तस्मात् कारणात् अत्र मद्राषितानां वचनानामेव सूत्राणां 'पद्धती मार्गे विषये ते तव प्रब. न्ता प्रबन्धकर्तृत्वमस्तु, प्रतिबन्ध्ता प्रतिबन्धकर्तृत्वं नास्तु / उभयत्रापि तृजन्ताइन्धेस्तल / अस्मिनिषेधोत्तरे ममानुकूलो भव, न प्रतिकूल इत्यर्थः // 37 // स्त्री में विद्वान् उन ( इन्द्रादि देवों ) के विषयमें सम्यक् प्रकारसे उत्तर देनेके लिये कदापि समर्थ नहीं हूं, इस कारण मेरे भाषण सूत्रसमुदायमें आप प्रवन्धकार (विशद व्याख्या करने वाला ) बनें, प्रतिबन्धक ( बाधक ) न बनें। [मैं स्त्री जाति स्वल्प बुद्धिवाली हूँ और वे इन्द्रादि दिक्पाल पुरुष जाति एवं बुद्धिमान् है, अतः उनके प्रति में विस्तारपूर्वक उत्तर नहीं दे सकती; इस कारण आप संक्षेप में कहे गये मेरे उत्तर को उनके सामने संक्षिप्ताक्षर सूत्रोंकी विस्तृत भाष्य तथा वातिकादि व्याख्यानके समान स्पष्ट रूपसे कह दें, किन्तु मेरे उत्तर का प्रतिकूल अर्थ कहकर बाधक न बनें। जिस प्रकार संक्षिप्ताक्षर सूत्रों के अनुसार उसके व्याख्यानभूत भाष्य या वार्तिक आदि प्रबन्ध किये जाते हैं, प्रतिकूल नहीं, उसी प्रकार आप भी मेरे उत्तरोंके अनुकूल ही इन्द्रादिसे कहें, प्रतिकूल न कहें ] // 37 / / निरस्य दूतः स्म तथा विसर्जितः प्रियोक्तिरप्याह कदुष्णमक्षरम् / कुतूहलेनेव मुहुः कुहूंरवं विडम्य डिम्भेन पिका प्रकोपितः / / 38 // ___ निरस्येति / स दूतः तथा तेन प्रकारेण निरस्य न्यक्कृत्य विसर्जितः सन् कुतहलेन हेतुना डिम्भेन शिशुना मुहुः कुहरवं विडम्ज्य अनुकृत्य प्रकोपितः पिकः 'इति कोः कदादेशः / अक्षरं वाक्यमाह // 38 // उस प्रकार (इलो 30--37 पाठा०-दमयन्ती तथा दमयन्तीकी ओरसे बोलने वाली उसकी सखीसे ) खण्डनकर प्रेषितप्राय ( प्रायः भेजा गया-सा ) प्रिय भाषण करनेवाला भी दूत (नल), बालक द्वारा कौतूहलसे बार बार 'कूहू' शब्दका अनुकरण कर रुष्ट किये गये कोकिलके समान कुछ कटु अक्षर ( अप्रिय वचन ) कहने लगा-( अथवा-खण्डितकर विसजिंत दूत उस प्रकार प्रियभाषी भी दूत' ) / [ जब कोयल बोलता है, तब बालक उसक शब्दको सुननेके लिये उसके शब्दका अनुकरण 'कहू-कुहू' शब्द करते हैं, उससे वह अधिक
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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